यात्रा संस्मरण

सुबह के आठ, सवा आठ के लगभग हम करीबन 42 टीचर्स के साथ जिन में  कुछ बच्चे भी शमिल थे, और हमारी प्रधानाचार्या भी हमारे साथ थी।
    सब उत्साह से भरे थे, फोटोग्राफी तो बस में बैठते ही शुरू हो गई थी। कोई काला चश्मा डाले था,तो कोई गोल टोपी, सब सुदंर परिधानों में चढ़ती धूप में भी खूब जम रहे थे।
हम अन्ताक्षरी खेलते खाते-पीते मस्ती कर रहे थे,किसी का अंकल चिप्स का पैकेट खोला,तो किसी की चटपटी पी नट, हम मस्ती में चूर ही थे, के बीच में गाना रोकना पड़ा क्योंकि हम चीची माता जी के दरबार आ गए थे। लम्बी सीढ़ी चढ़ हमने माता के दर्शन किये,और अपनी साथी 'कविता महाजन जी' से माता की कहानी सुनी की 'जब माता सती हुई तो उनके शरीर का एक भाग यहाँ गिरा  जिस से माता का ये स्थान बना यहाँ पर माता की पाँच अंगुली में से सबसे छोटी (चीची) अंगुली यहाँ गिरी और माता चीची का मन्दिर यहां बना। हम दर्शन कर यहां से आगे बढ़े। फिर हम गाते,मस्ती करते कब मानसर पहुँच गए पता ही न चला।
मैंने पहली बार मानसर देखा वाह! लाजबाब अनुभव, मेरी साथियों ने मुझे बहुत कुछ कहानीयाँ झील से सम्बंधित सुना दी थी, और बहुत कुछ नेट पर छानबीन मैं कर चुकी थी।
जैसे ही हम अंदर गए,मेरे मन में जिज्ञासाओं की झड़ी सी लग गई।
तेज धूप की बजह से हम चिनार के पेड़ की छाया के नीचे बैठे, फिर पेट पूजा की, किसी ने गर्म चाय की चुस्कियों के साथ थकान कम की तो किसी ने ठण्डी कोल्डड्रिंक पी, हल्का फुल्का खाया पिया और जिज्ञासाओं को तृप्त करने के लिये निकल पड़े।
  बड़े-बड़े चिनार के पेड़,रंग-बिरंगे फूल,मुस्कराती होये पक्षी और शांत झील जो मानो रहस्य का पयार्य हो, हाँ सच में मैंने ये पढा है की रहस्यवाद की शुरुवात मानसर से होई और मैं भी पहली बार ये जानकर आपके ही तरह चकित हो गई,'एक मील लम्बी और आधा मील चौड़ी' झील की तरफ जैसे ही हम बढ़े, आटा आटा ....आटा... ले लो आटा..ले... ये जोर-जोर की आवजे कानों में पड़ने लगी और हमने आटा लिया 10₹ की एक छोटी लुई मैंने खरीदी और मेरी साथी रूही ने तो 100₹ दे उसकी सारी लुई खरीद ली और मछलियों के साथ उफ़! न न न... बाबे हाँ जी मुझे पता चला की इनको मछली नही बोलते, क्योंकि लोग इन्हें देवताओ का रूप मानते हैं। तो हमने बाबे के साथ खूब मजे किये। एक साथ इतने बाबे(मछलियों) देख मन खुश हो गया उन्होंने हमे खूब आशीष दिया (यानि पानी फेंका) इसको आशीष देना कहते हैं।
हमने परंपरागत डोगरी व्यंजन खाये। जो हमारे वरिष्ट सर यशपाल जी और राजू जी ने हमें परोसे। खाना खाने में आनन्द आ गया, अम्बल(कद्दू की खट्टी सब्जी) राजमा, पूड़ी, चावल वाह!स्वादिष्ट भोजन।
  फिर मैं और मेरी साथी रूही हम दोनों शेषनाग के दरबार में गए करीबन 6फिट लम्बे शेषनाग जो शिला रूप में सोये होये थे, लाल रंग की चुनरी ओढे होये थे।
   हमने वहाँ पुजारी जी से जो करीबन 85 साल के थे,हमें उन्होंने वहाँ का सारा इतिहास सुनाया। और हमारी सवालों का वो जबाब देते गए, पर कुछ रहस्य और सवाल हमारे साथ ही आये।
     झील का पानी वाकई में कुछ कहता था, हमें पता चला की यहाँ का पानी पाताल लोक से आता है। और इसमें मछलियों,कछुवाओ,नाग के रूप में देवता निवास करते है, इनके साथ कोई किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नही कर सकता।
 ऐसे शानदार अनुभव पा हम आनन्दित हो गए,और अविस्मरणीय यादें सदा के लिये अपने साथ लेकर हम सारे वापस आये।
         ---पूर्ति खरे---
Poorti Khare: मानसर यात्रा पर, मेरे डायरी के पन्ने
Email pke.av@dbntrust.in, DBN Amarvilla School, Jammu

Yaden - Memories (Hindi)

कहते हैं कि यादें, याद आती हैं किसी अपने के जाने के बाद,लेकिन मेरा मानना है कि यादें तब भी याद आती है, जब हम किसी अपने को छोड़ आते हैं जो हमसे कुछ समय के लिए मिला हो और उससे हमारा एक अनजाना सा रिश्ता बन गया होI
यादें दो प्रकार की  हो सकती  हैं एक जो हमें ख़ुशी प्रदान  करती है  और दूसरी जो दुःख,लेकिन यादें निर्भर करती है उनको बनाने वाले पर  कि वो कैसी यादें  बनाना चाहता हैI
यादों का महत्त्व शिक्षक  के जीवन में सबसे ज्यादा होता है क्योंकि समाज में शिक्षकों की अहम  भूमिका होती हैI माता- पिता के बाद शिक्षक  ही बच्चों के मार्गदर्शक होते हैंI माता-पिता  बच्चों को चलना सिखाते हैं तो शिक्षक उनको जीवन जीने की कला सिखातें हैंI  जिस ब्यक्ति के जीवन में शिक्षक के चरण नहीं पड़ते,वह सदैव भटकता रहता हैI
एक समय ऐंसा था जब यादों को संजो के रखने के साधन सीमित, थे लेकिन आज के दौर में ऐंसा नहीं हैI आज आप अपनी यादों को आसानी से सजों के रख सकते हैंI
जब दो जानने वाले आपस में बहुत समय के बाद मिलते हैं तो पहले वो एक -दूसरे को थोड़े समय के लिए देखते हुए पहचानने  की कोशिश करते हैं, और उसके बाद उनके बीच  जो वार्तालाप होती है उसकी ख़ुशी आप साफ-साफ उनके चेहरों पर देख सकते हैं लेकिन जब एक छात्र और शिक्षक आपस में मिलते हैं, तो छात्र एकदम से अपने शिक्षक को पहचान लेता है क्योंकि छात्र कभी भी अपने शिक्षक को भुला नहीं  पाता है चाहे उसके रिश्ते शिक्षक से अच्छे हो या फिर बुरे, और वैसे भी शिक्षक तो शिक्षक ही रहता है परिवर्तन तो छात्र में ही होता हैI
आज मै अपने शिक्षकों  को याद  करता हूँ तो मुझे सिर्फ दो ही शिक्षक याद आतें हैं जिनके बारे में मुझे पूरी जानकारी है क्योंकि मै उनसे साल मे एक बार जरूर मिलता हूँ पर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि मै अपने दूसरे शिक्षकों को  भूल गया हूँI

अतः मेरा आप सभी से निवेदन है कि आप भी अपने शिक्षकों की यादों को संजो कर के रखे और समय-समय पर उनको  याद करते रहेंI
- Suresh Negi, teaches at The Fabindia School in Rajasthan, his email is sni4Fab@gmail.com

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