'सज्जनता' एक भाव नहीं है, यह तो एक पूर्ण रूप से संयुक्त भाव है। उदारता, सहिष्णुता, सहृदयता और स्नेह आदि इनके पूरक गुण है। इन गुणों का विकास समाज के हित में होता है। किसी भी व्यक्ति की संगति से यह तय होता है कि कौन व्यक्ति सज्जन है एवं कौन दुर्जन।
व्यक्ति का निर्मल आचरण मृदुल वार्तालाप,
सहज स्नेह भाव और सेवा एवं सहयोग की तत्परता से उसे सज्जन
व्यक्ति की उपाधि देता है। बौद्ध धर्म में इसे 'सम्यक विचार'
कहकर धर्म की निष्ठा के रूप में स्वीकार किया गया है। सज्जनता
की महत्ता 'विनयाद याति पात्रताम्' के वाक्य से भी बताया गया है
कि विनयशील व्यक्ति ही सुपात्र तथा सज्जन कहलाता है।
हम दूसरों के साथ जिस प्रकार का
आचरण करते हैं, उसकी एक निश्चित प्रतिक्रिया होती है। हमारे आचरण से अगर अन्य
व्यक्तियों को कष्ट या दुख प्राप्त होता है तो
कौन हमें विनयशील और सज्जन समझेंगे और यदि हमारे आचरण में
छल, कपट, द्वेष और स्वार्थ परायणता होती हैं तो वह हमें दुर्जन समझते हैं। इसका अर्थ
यह हुआ कि हमारे आचरण के स्वरूप पर ही दूसरों का आचरण निर्भर है। एक अच्छा आचरण समाज के हित में
होगा और लोगों के हित में होगा। वहीं व्यक्ति सज्जनता की
परिधि में आएगा।
परिवार आचरण की पहली पाठशाला है। सत्य
बोलना और उचित आचरण का पाठ प्रत्येक माता-पिता को अपनी
संतान को देना चाहिए। मधुर बोलना,
बड़ों का आदर, छोटों से प्यार और मित्रों से सत्य व्यवहार यह सब बच्चों को इसलिए सिखाया
जाता है कि वह बड़े होकर समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सके और कोई उनके अनुचित
व्यवहार के कारण उन्हें घृणा का पात्र नहीं समझे।
श्रेष्ठ आचरण जीवन की उन्नति का आधार तो है ही, साथ ही अनुशासन सिद्ध पुरुष ही संसार में महापुरुष बन सके हैं। जैसे - महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानंद,
मदर टेरेसा, मार्टिन लूथर, नेल्सन मंडेला,
ज्योतिबा फुले, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर, डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम आदि।
इन्होंने अपनी सज्जनता से दूसरों को अनायास ही प्रभावित
किया है और आज भी इनकी स्तुति की
जाती है। यदि इनका आचरण शुद्ध नहीं होता तो वे सज्जन नहीं
समझे जाते और समाज उनका यशोगान कभी नहीं
करता।
उर्मिला राठौड़
ure@fabindiaschools.in
Thanks ma'am
ReplyDeleteHelped a lot😊