भावनात्मक एकता - कुसुम डांगी

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भावना के स्तर पर एक देश  या राष्ट्र के सभी जनों  में एकता का भाव रहना अत्यावश्यक हुआ करता हैं। ऐसा भाव ही भावनात्मक एकता कहलाता हैं संस्कृत  की एक कहावत है, संघीय शक्ति कलियुग, अर्थात् कलियुग में संघ संगठन या संगठन में ही वास्तविक शक्ति छिपी रहा करती हैं  संगठन का मूल अर्थ और भाव है -एकता छोटे स्तर पर घर परिवार में, सुरक्षित जीवन जीने के लिए जिस प्रकार एकता या एकत्व का भाव आवश्यक है उसी तरह किसी जाति  , देश और राष्ट्र के जीवित  प्राणवान और, सुरक्षित बने रहने के लिए एकता रहना पहली बुनियादी  शर्त हैं उसके भाव में संकल्प या विस्तृत प्रत्येक स्तर पर विघटन और बिखराव राष्ट्रों  की  एक आवश्यक नियति बन जाया करती हैं। 

इसी कारण समझदार और अनुभवी लोग प्रत्येक स्तर पर एकता बनाए रखने की बात कहा करते हैं केवल कहते ही नहीं आचरण व्यवहार में भी  डाला करते हैं। हमारा देश भारत एक विशाल और विविधताओं वाला देश है यहां की विविधता प्रकृति और भूगोल में तो दिखाई देती है सभ्य चारों सामाजिक व्यवहारों, सहज मानवीय, धारणाओं, आस्थाओं  धर्मों   और संस्कृतियों में भी देखी जा सकती हैं। इसी प्रकार खान- पान, रहन - सहन और भाषाई मे वैविध्य में भी इस देश की एक बहुत बड़ी और प्रमुख विशेषता हैं। जिसे  हम भारतीयता  कहते हैं वह विविधताओं का भावनात्मक संगम है जिससे हम भारतीय  धर्म और भारतीय संस्कृति कह कर गर्व से फूले नहीं समाते वह सब वस्तुत विविध धर्म और संस्कृति के संबंध मे तत्वों का सारा स्वरूप हैं  और इस विविधता तथा अनेकता में एकता के कारण ही वह सब महान  भी हैं  इसी प्रकार सभी स्तरों  पर विविधताओं  और अनेकताओं  के रहते हुए भी जिस चीज में बहुरंगी मणि माला के समान इस देश को एक सूत्र में पिरो रखा है  उसका सूक्ष्म - अमूर्त नाम है भावनात्मक एकता अर्थात भाव के स्तर पर छोटे -बडे़ हर धर्म-जाति के  सभी एक है। 

भारतीय संविधान वस्तुत: भावनात्मक एकता की गारंटी  हैं  व्यवहार, के स्तर , प्रत्येक भारतवासी स्वतंत्र है कि चाहे जिस  भी धर्म और  संप्रदाय  को माने जिस  किसी भी रूप में अपने अल्लाह , ईश्वर की उपासना करें कोई भी भाषा , बोली बोले और पढ़े- लिखे कुछ भी पहने , ओढ़े तथा खाए- पीए किसी भी, भाग में रहे और रोजी- रोटी कमाये कही कोई निषेध या पाबंदी नही हैं। संविधान तक ने इन सब बातों  को स्वतंत्रता  की गारंटी  प्रत्येक जाति - वर्ग के व्यक्ति को प्रदान  कर रखी  हैं पर जहाँ तक देश और, राष्ट्र का  प्रश्न है  भारतीयता और, उसके सामूहिक हितों, का प्रश्न है, भावना के  स्तर पर हम अखण्ड और एक हैं इस व्यापक भावना या वैविध्यपूर्ण स्वरूप को ही भावनात्मक एकता कहते हैं। 

हमें गर्व है कि हमने महात्मा बुद्ध ,कबीर ,तुलसी नानक और गांधी के  देश में  जन्म लिया हैं इन लोगों ने समय के रूख और भविष्य की  नाड़ी को पहचान कर ही हमें सब प्रकार के, भेद- भावों  से ऊपर उठकर सहज  मानवीयता  का भाव उजागर कर भावना के स्तर  पर एक रहने का अमर संदेश दिया हैं उस संदेश को किसी भी दशा मैं हमें बुलाना नहीं है भुलाना आत्महत्या  के समान होगा अपनी राष्ट्रीय और  जाति अस्मिता युग- युगों  तक जीवित या  प्राणवान और प्रवाहमयी  बनाए रखने  के लिए आवश्यक है  कि हम अपने उपयुक्त  महापुरुषों , आदर्शों, मूल्यों की रक्षा भी इसके बने रहने पर ही संभव हो सकती हैं ऐसा सभी समझदार लोग मुफ्तभाव से मानते हैं इसी कारण इस प्रकार की एकता की बात बल दिया गया हैं

हमेशा भावनात्मक एकता बनाए रखें। तथा  आपसी मतभेद को मिटाकर भावनात्मक एकता बनाए रखनी चाहिए। और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए।

कुसुम डांगी 
द फैबइंडिया स्कूल
kdi@fabindiaschools.in

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