संकल्प: कृष्ण गोपाल

किसी बात का मन में निश्चय कर देना कि यह काम में करके ही रहूँगा, संकल्प कहलाता है।सदियों से यह प्रथा चली आ रही है कि हाथ में जल लेकर या अग्नि को साक्षी मानकर किसी बात का संकल्प लिया जाता है। जल और अग्नि यह केवल एक निमित्त मात्र हैं किंतु मनुष्य का दृढ़ निश्चय, काम करने का प्रयत्न ही उसके लिए संकल्प है। यदि दृढ़ निश्चय मन में है तो किसी प्रकार के जल और अग्नि की साक्षी आवश्यक नहीं है।

कई सारे ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जिनको देखकर अन्य व्यक्ति भी दृढ़ संकल्प से भर जाता है। दृढ़ संकल्प से कई रुके हुए काम बन जाते हैं तथा असंभव से दिखते कार्य भी पूर्ण हो जाते हैं। अपने मन में आए हुए विचारों को धरातल पर उतारने के लिए दृढ़ निश्चय होना आवश्यक है।


एक बार मैंने भी मन ही मन वैदिक संस्कृत की पुस्तकों को पढ़ने का निश्चय किया। ग्रंथों को पढ़ने से पहले संस्कृत का ज्ञान परम आवश्यक था क्योंकि भाषा के शब्द-कोश को जाने बिना या उसकी व्याकरण को जाने बिना उसके ग्रंथों को पढ़ना निरर्थक था। संस्कृत से मेरा ज्यादा लंबा संबंध नहीं था। दसवीं कक्षा तक संस्कृत का अध्ययन अवश्य किया था, इससे अधिक कुछ भी नहीं था। दसवीं कक्षा पास किए हुए भी एक लंबा अरसा हो गया था।


अब अपने संकल्प को पूरा करने के लिए सर्वप्रथम मैंने व्याकरण की कई पुस्तकें खरीदी तथा स्वाध्याय करते हुए ही व्याकरण का ज्ञान अर्जित किया। संस्कृत के विभिन्न सूत्रों के अर्थ जाने तथा उनके प्रयोग के बारे में जानकारी की। हर छोटी-छोटी बातों को भी मैंने सम्मिलित किया। संपूर्ण रूप से मैं पुस्तकों पर ही निर्भर था, मार्गदर्शन के लिए किसी भी व्यक्ति का सहारा नहीं था इसलिए इस काम में थोड़ा समय जरूर लगा किंतु जो कुछ भी सीखा वह स्थायी हो गया।


इन सब के पश्चात मैंने संस्कृत के उन ग्रंथों को पढ़ा जिनको पढ़ने की इच्छा मेरे मन में जागृत हुई थी। पुस्तकों की कमी नहीं इसी कारण यह क्रम आज भी चल रहा है। हाँ, अवश्य ही इन पुस्तकों के पठन की गति में कमी आई है परंतु पठन की यह धारा अविरल बह रही है।


परिश्रम और दृढ़ निश्चय से मैंने अपना यह संकल्प पूरा किया और इसे आगे भी ले जा रहा हूँ। कुछ कठिनाइयाँ भी अवश्य आई परंतु आनंद की अनुभूति भी कुछ कम नहीं थी। अतः अपने संकल्प को पूरा करने के लिए स्वयं ही निश्चय करें। 


Krishan Gopal 

The Fabindia School 

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