उम्मीद और मित्रता - ज्योति तड़ियाल

उम्मीद और मित्रता

विद्यार्थी जीवन नई राहों और मजिलों की ओर बढ़ने का प्रारंभिक सोपान है। विद्यार्थी अलग परिवेश व परवरिश से आते हैं। ऐसे में दो परिस्थितियां प्रायः देखी जाती हैं –

( क) एक विद्यार्थी जिसने सारी आशाएं खो दी हैं।

(ख) एक विद्यार्थी जिसका विद्यालय में कोई मित्र न हो।

ऐसी परिस्थिति का विद्यार्थियों पर पढ़ने वाला संभावित प्रभाव।

विद्यार्थी पर पढ़ने वाला प्रभाव जिस विद्यार्थी की सारी आशाएं समाप्त हो गई हों उसके कुछ नया सीखने का जोश व उत्साह भी समाप्त हो जाता है। जब इच्छाशक्ति का अभाव हो जाता है। तो पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव तो पड़ता ही है साथ ही व्यवहार भी प्रभावित होता है व अनुशासन की कमी भी दृष्टिगत होती है। जिसका सीधा प्रभाव विद्यार्थी की शैक्षिक उन्नति पर पड़ता है।

एक ऐसा विद्यार्थी जिसका विद्यालय में कोई मित्र न हो वह एकाकी व उत्साहहीन अनुभव करेगा। कहते हैं दो दिमाग एक काम को ज्यादा कुशलता से करते हैं और फिर मित्रता तो जीवन का आधार है। ऐसा विद्यार्थी जिसका मित्र न हो वह विद्यालय में निराशा का अनुभव करेगा जिससे उसके ज्ञान का संसार भी सीमित ही रह जाएगा।

जब विद्यार्थी की इस परिस्थिति से निकलने में सहायता की। ऐसी मुश्किल परिस्थिति में सर्वप्रथम विद्यार्थी के साथ सहानुभूति का व्यवहार करें और उसकी समस्या को प्राथमिकता दें। मेरे समक्ष भी जब ऐसी ही कठिन परिस्थिति आई तो सबसे पहले मैंने उनकी समस्या के मूलभूत कारण को जानने का प्रयास किया। क्योंकि बिना कारण जाने निवारण संभव नहीं है। आत्मीयता की भावना जाग्रत करी। जब तक सामने बैठा व्यक्ति आपसे आत्मीयता का अनुभव नहीं करेगा तब तक वह अपने कष्ट का भी वर्णन नहीं करेगा। बस इसी प्रकार मैंने भी सहानुभूति व आत्मीयता द्वारा विद्यार्थी को इस मुश्किल परिस्थिति से निकाला।

शिक्षकगणों को सलाह

ऐसी परिस्थिति प्रायः विद्यालय में आ ही जाती है, जब विद्यार्थी एकाकी व निराश अनुभव करता है। ऐसे में सभी शिक्षकों का उत्तरदायित्व होता है कि इन कठिनाइयों से जूझ रहे विद्यार्थी के प्रति नम्र व्यवहार रखें। उन्हें प्रेरित करें, उनके मन में आशा का संचार करें। व्यक्तिगत रूप से उनसे बातचीत करें, पारिवारिक सदस्य की तरह व्यवहार करें। उन्हें अपने जीवन के ऐसे अनुभव बता सकती हैं, जब आपने भी एकाकी व निराश अनुभव किया और अंत में उससे बाहर निकलने में सफलता पाई। कहानी, घटनाओं, कविताओं द्वारा उनका मार्गदर्शन करा। इस प्रकार शिक्षाविदों को मेरा सुझाव है कि इस प्रकार के विद्यार्थियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखें तथा व्यक्तिगत रूप से उनसे जुड़ें। जीवन का सत्य यही है यही है कि कोई भी मित्र व सकारात्मक दृष्टिकोण के नहीं रह सकता।

मित्र सच्चा हितैषी व साथी होता है। मित्र के ऊपर गोस्वामी तुलसीदास जी भी लिखते हैं –

धीरज धर्म मित्र अरु नारी।
आपातकाल परखिए चारी।।

इसी प्रकार जीवन में आशा व उत्साह होना आवश्यक है । जो भी आगे होगा वह अच्छा होगा तभी भविष्य उज्ज्वल होगा।

प्रेषक
ज्योति तड़ियाल
द दून गर्ल्स स्कूल

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