Kalpana Jain ”एक ख्वाब था चरखे पे बुना अपना वतन हिन्दोस्तां”


”एक ख्वाब था चरखे पे बुना अपना वतन हिन्दोस्तां” जब ये धुन मेरे कानों में पड़ी तो विचार आया कि आज का जो भारत हमारे आसपास बिखरा हुआ पड़ा है - जातियों में, अशिक्षा में, भुखमरी में या फिर तथाकथित बुद्धजीवियों में- जो विदेशों में जाकर, विदेशी चैनलों के आलीशान एयरकंडीशन स्टूडियो में बैठकर भारत को जानने का दंभ भरते हुए स्वघोषित सच को उजागर करते हैं या फिर वो दलों के अगुआ जिनके ‘मुँह में राम है और बगल में छुरी’- जो जनता के पैसे से अपनी तिजोरियाँ भरते हैं और पाँच सालों के बाद सरकारी बंगलों से नल और टाइल्स उखाड़कर ले जाते हैं या फिर वे छद्म समाजसेवी जो सेवा का ढोंग करके मासूम बच्चों के सपनों को तार-तार कर देते हैं या फिर वे कट्टरपंथी जो सिर्फ अपने लाभ के लिए जाति का इस्तेमाल करते हैं, जिन्हें राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत राष्ट्र का न लगकर किसी जाति का लगता है, जो संविधान के अनुच्छेदों को अपने हितों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करते हैं।  जहाँ तक नज़र जाती है कचरे का ढेर नज़र आता है । सच में क्या ऐसे ही भारत का ख्वाब हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने देखा था? क्या ऐसे ही भारत के लिए उन्होंने अपने घर के सुख को छोड़ा था। अपने व्यक्तिगत जीवन को तिलांजलि दी थी।



जिसे देखो वही अपने छोटे-छोटे हितों के लिए देश का बड़े से बड़ा नुकसान करते समय एक क्षण भर भी नहीं सोचता । बेईमानी और भ्रष्टाचार उनके खून के साथ रगों में दौड़ रहा है। हाँ कभी-कभी एक लहर देशभक्ति की आती है जब तिरंगे में लिपटा हुआ कोई वीर अपने घर लौटता है। कुछ सिसकियाँ उभरती हैं। संवेदना प्रकट करने की औपचारिताएँ निभाई जाती हैं। ऐसे समय में भी कुछ अमानवीय व्यवहार कभी-कभी कैमरे की नज़र में आ जाते हैं। मैंने कुछ दिन पहले टीवी पर एक दृश्य देखा जिसमें एक वीर जब वतन पर अपनी जान कुर्बान कर सदा के लिए आराम करने अपने घर वापस आया तो एक तथाकथित दल के वरिष्ठ नेता उनके पास संवेदना प्रकट करने आए उनका परिचय देते हुए उनके पिछलग्गू ने शहीद के परिवार से उन्हें यह कहकर मिलाया कि इनका आभार व्यक्त कीजिए- नेताजी आए हैं।
ऐसे दलों के अगुवाइयों के लिए शायद मैंने ज्यादा ही आदर पूर्ण शब्द इस्तेमाल कर लिए हैं। ये सब टीवी में देखकर मेरा तो खून ख़ौल उठा। शायद अभी भी मुझमें मेरा देश धड़कता है।
यदि वे सभी शहीद जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलनों में स्वतंत्रता की अलख जगाकर हमें वो आज़ादी दिलाई, जिसमें आज हम सभी चैन की साँस ले रहे हैं । और वे सब भी जो कुछ भी करने के लिए आज़ाद हैं, जो येन केन प्रकारेण अपनी  तिजोरियाँ भर रहे हैं । मैं कहना चाहती हूँ ऐसे तथाकथित समाजसेवियों, नेताओं और बुद्धजीवियों से कि वे अपने ड्रॉइंग रूम से बाहर निकलें । अपने पूर्वाग्रह के चश्मे उतार फेंकें और देखें आम भारतीयों के दिलों में जहाँ पर भारत बसता है।  अभी भी हमारे दिल देश के लिए धड़कते हैं। भारत हमारे खून के साथ रगों में दौड़ता है। हमारी देश भक्ति भी जागती है। जब कहीं से भी एक लहर आती है, तो हमारा दिल भी जोर- जोर से उछालें लेता है । घोटालों से भरे इस भारत में यदि वे सभी महान शहीद  एक दिन के लिए वापस लौट आए तो उन्हें क्या लगेगा ? क्या किसी एक के मन में भी ये विचार आता है ?
ऐसा नहीं है कि सभी भारतीय हृदय संवेदना शून्य हो गए हैं । हमारा देश हमारे अंदर है । हाँ…हम सब अपने भारत पर और अपने भारतीय होने पर गर्व करते हैं और अनायास हमारे ओंठ गाने लगते है।
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा ।
हम बुलबुले हैं इसके ये गुलसितां हमारा ।।
🇬🇶 जय हिंद  जय भारत 🇬🇶
- Kalpana Jain, The Iconic School Bhopal
Email jainkalpna17@gmail.com

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