कृष्ण गोपाल: पढ़ाने का साहस

यह आवश्यक है कि  अध्यापक मन से अध्यापक हो, मजबूरी  नहीं।  ये काम जब मन से हो तो बेहतरीन गुणवत्ता आना असंभव है।  मन से किए गए काम में गुणवत्ता के साथ बालकों  लिए सुरक्षित माहौल मिलेगा जो सीखने की क्रिया के लिए परमावश्यक है।  

कक्षा का माहौल विद्यार्थियों  के पक्ष का हो तभी वे बोलने और नए प्रयोगों से घबराएँगे नहीं। अध्यापक बच्चों में रुचि पैदा करें, नयी तकनीक और विधियों का इस्तेमाल करें, बच्चे में आत्मविश्वास जगावें। इस प्रकार  प्राप्त किया ज्ञान बालक ऐसे आत्मसात करेगा कि समय गुजर जाने पर भी वह उसके स्मृति-पटल पर रहेगी।  

जो बात बालक  सिखाई जा रही है  बात को वास्तविक जीवन  से जोड़ें तब सीखने वाले को लगेगा कि ये मेरे लिए कितना आवश्यक है, वह अधिक रुचि से सीखने का प्रयास करेगा। खुशनुमा माहौल में बालक को व्यावहारिक ज्ञान भी देना जरूरी है। यदि कहीं लगे कि बालक सीखने में उदासीनता दिखा रहा है या विषय उसके अनुकूल नहीं तब अपनी तकनीक से, गतिविधियों से या अन्य किसी प्रकार से उस विषय को रुचिकर बनावें।  अकसर ऐसी परिस्थितियाँ भी पैदा करें जब बालक को अपना दिमाग का इस्तेमाल करना पड़े। करके सीखी गई बात अमिट रहती है।   

वैसे भी कक्षा का वातावरण बालकों पर आधारित होना चाहिए कि अध्यापक पर।अध्यापक को बालकों के हित में सोचते हुए ही शिक्षण कार्य करना चाहिए, जहाँ स्वयं अध्यापक भी बहुत सारी बातें सीखता है |कई चुनौतियों का सामना भी अध्यापक को करना पड़ता है कई बार नए प्रयोगों में असफलता भी हाथ लग सकती है परन्तु बिना साहस खोए बढ़ते जाना ही अध्यापन है।  
कृष्ण गोपाल 
Educator @ The Fabindia School, Email kde4fab@gmail.com

Blog Archive