राजेश्वरी राठौड़: वाणी-का संबंध शिक्षा से

जब भी हम बोलते है, तो उससे ज्यादा जरूरी है, हम किसी की बात को सुनें और श्रवण के लिए हमेशा धैर्य,लगन और ध्यान दें, जब हम किसी से बात करते तो किसी संवाद में सम्मिलित होने की कला, बोलने के बजाय श्रवण में है और जब हम सुनते हैं तभी अच्छे वक्ता बनते हैं  बोलना एक ऐसी कला है, जिससे हमारा चरित्र, मन के विचार और ज्ञान का आधार व्यक्त होता हैं, साथ ही  बोलने का सही तरीका होना चाहिए जैसे- धीरे बोलना, अपनी बात को छोटे से छोटे वाक्यों में व्यक्त करना, हमेशा सकारात्मक भाव प्रकट करते हुए बोलना और इन सभी तरीकों को का महत्व तब समझ में आता है जब हमें अपने शब्दों की अहमियत पता चलती है क्योंकि “शब्द वह तीर है जो किसी व्यक्ति को तन से नहीं मन से घायल करते है।"

वार्तालाप से हमारे विचार प्रकट कर सकते हैं, लोगों के विचारों का आदान-प्रदान, ज्ञान को बाँटना, आवाज की गहराई, अपनी बात व्यक्त करने की क्षमता गलत तरीके से व्यक्त की गई बातें गलतफहमी उत्पन्न कर सकती हैधारा प्रवाह बोलना अपनी सोच की काबिलियत दर्शाता है सामूहिक वार्तालाप (ग्रुप डिस्कशन) द्वारा विचार विमर्श से हमारी त्रुटियों का हमें पता चलता है

बच्चे किसी भी भाषा का उच्चारण शीघ्र ही सीख सकते हैं उच्चारण के लिए उस प्रांत के कार्यक्रम उसी भाषा में सुने रेडियो, टेलिविजन, इंटरनेट द्वारा उसका अभ्यास करें उच्चारण पर ध्यान रहे बच्चों से वार्तालाप करें उससे आपको उनकी बोलने की अथवा सोचने की गहराई मिलेगी बच्चे वार्तालाप में अपने विचार प्रकट करते हैं तो उनसे प्रश्न करो आप इसके “बारे में क्या सोचते हैं?”,आप ऐसा क्यों सोचते हो?” “आप इसे कैसे सिद्ध कर सकते हैं?”, इससे बच्चे में सोचने की क्षमता व बोलने की क्षमता धीरे-धीरे विकसित होती है अधिकतर 4 से 8 साल के बच्चों में सीखने के गुण अधिक पाए गए हैं इनसे वे नए शब्द भी सीखते हैं अगर आप बच्चों से चिड़चिड़ापन या गुस्से से व्यवहार करते हो तो बच्चे स्कूल में भी वैसा ही करेंगे बच्चों की उम्र के बढ़ने के साथ ही साथ बोलने का कौशल विकसित होने लगता है  बोली से मुझे कबीर दास जी द्वारा रचित दोहा याद आता है  
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोले जानि,
हिये  तराजू तोलि  के तब मुख बाहर आनि

इसका अर्थ है बोली अनमोल है, यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो जब ही  जो भी बोले जानकार सोच-समझकर मुँह से बाहर आने दे, उसे हमेशा हृदय से नाप- तोल कर ही बोलना चाहिए, सोच- समझकर ही शब्द बाहर निकालने चाहिए  किसी के मन में दुख पहुँचे वैसे शब्द नहीं निकालने चाहिए  इसीलिए वाणी एक अनमोल रत्न है

Rajeshwari Rathore, The Fabindia School

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