Kalpana Jain: गुरु गोविंद दोऊ

*"गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पांय।"* शिष्यों के सामने दुविधा की स्थिति.....क्या करें? अंततः कबीर का समाधान *"बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।"* ये है भारत के अतीत का स्वर्णिम काल.......गुरु-शिष्य परंपरा...... वेदों-उपनिषदों की रचना.......शून्य अंक की खोज.......विश्व गुरु भारत। फिर अंग्रेज भारत आए और उन्होंने भारत को गुलामी के अंधेरों में धकेल दिया। उन्होंने भारतीयों के मस्तिष्क पर ऐसा कुठाराधात किया कि भारतीय प्रतिभा की चमक धूमिल पड़ने लगी। मैकाले ने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली लागू की जिसने भारतियों को क्लर्क बना दिया। स्वतंत्रता संग्राम....... और आज़ाद भारत........। भारतीय संविधान और आरक्षण.. आप सोच रहे होंगे कि आज मैं ये सब क्या लेकर बैठ गई। कहावतों की भाषा बोलूँ तो गड़े मुर्दे उखाड़ना।

लेकिन आज शिक्षक दिवस के अवसर पर  शिक्षा की और पढ़े-लिखे उच्च शिक्षा प्राप्त सामान्य वर्ग के लोगों की दुर्दशा देखकर मुझे रह-रहकर बीते दिनों का भारत याद आ रहा है। जहाँ महान मनीषी, चिंतक और विचारक हुआ करते थे। वर्तमान और स्वतंत्र भारत.... और वोट की राजनीति .... सच में ....कितने पिछड़ गए हैं हम। वोट पाने के चक्कर में नेताओं ने पूरे भारतीय समाज को जातिगत समीकरणों में बाँट दिया है। संविधान सभा ने तो महज़ कुछ सालों के लिए पिछड़े और दलित वर्ग को मुख्य धारा में लाने के लिए उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण दिया था। किंतु स्वार्थी नेताओं ने इसे वोट बैंक की राजनीति बना डाला और शिक्षा को हाशिये पर धकेल दिया।

मेरे इन शब्दों का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि इन वर्गों को सहारा नहीं दिया जाना चाहिए। बल्कि मैं तो यह कहना चाहती हूँ कि पक्षपात से अलग होकर आर्थिक आधार पर भारत के सभी बच्चों को शिक्षित किया जाना चाहिए। देश के हर नागरिक को शिक्षा पाने का पूरा अधिकार है। सभी को निःशुल्क प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा देना ही चाहिए। लेकिन इसमें राजनीति बिलकुल नहीं होनी चाहिए। वोट पाने के चक्कर में साइकिल और लैपटॉप बाँटना सरासर गलत है।

नेताओं ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए देश के सर्वोच्च शिक्षण संस्थानों जैसे- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेडिकल इंस्टिट्यूट और भारतीय सिविल सर्विसेज आदि में भी आरक्षण का ज़हर घोल दिया है। जिससे प्रतिभाओं का उचित आकलन नहीं हो पा रहा है। सामान्य वर्ग में निराशा भरती जा रही है। लोग आत्मदाह कर रहे हैं। और वहीं दूसरी ओर आरक्षण की बैसाखियों से चलकर ऐसे लोग बड़े पैमाने पर उन पदों पर पहुँच रहे हैं जो ज्ञान और अनुभव से दूसरों से कमतर हैं। इससे प्रतिभाओं के साथ अन्याय हो रहा है। क्या वाकई में प्रतिभाओं के साथ यह खिलवाड़ उचित है? क्या इन जगहों को भी किसी एक विशेष वर्ग के लिए आरक्षित करना चाहिए या फिर बुद्धि के बल पर इन्हें प्राप्त करना चाहिए।

शिक्षक पदों पर भी भर्ती की यही प्रक्रिया होती है। सरकारी स्कूलों में नियुक्त ऐसे कई टीचरों के वीडियो व्हॉट्स अप और फेस बुक पर मिल जाएँगे, जिन्हें सोमवार-मंगलवार आदि दिनों की स्पेलिंग लिखना नहीं आती। जो साधारण गणित के छोटे-छोटे सवाल भी हल नहीं कर पाते। बताइए, किन लोगों के हाथों में हमारे देश का भविष्य है? बड़ी भयावह स्थिति है। ज़रा सोचिए तो... ये लोग जिन्हें स्वयं शिक्षा की जरूरत है, वे शिक्षक के पद पर आसीन है। ये तो शिक्षा के पतन की पराकाष्ठा है। शायद राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने यही सोचा होगा तभी उन्होंने कहा-
*"हम कौन थे, क्या हो गए, और क्या होंगे अभी।*
*आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी।।"*

राजनीतिज्ञों ने सत्ता पाने की लालच में हमारे देश के नोनिहालों का भविष्य को दांव पर लगा दिया है। अभी कल ही मैंने एक वीडियो देखा। एक प्रधानाचार्य ने अपने विद्यालय में भी आरक्षण लागू कर दिया है। शिक्षकों और विद्यार्थियों को जातिगत वर्गों में बाँट दिया है। जनरल वर्ग विद्याथियों के लिए जनरल शिक्षक, ओबीसी वर्ग के छात्रों को ओबीसी शिक्षक और एस-सी,एस-टी छात्रों को पढ़ाने के लिए उसी वर्ग के शिक्षक की नियुक्ति। यह विरोध प्रकट करने का एक तरीका हो सकता है। लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूँ। क्योंकि बुद्धि और प्रतिभा किसी एक वर्ग की बपौती नहीं है। हर बच्चा एक विशेष योग्यता, क्षमता और बुद्धि-कौशल लेकर पैदा होता है। प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। बच्चा तो उस अनगढ़ हीरे की तरह होता है जिसे बस तराशना है। थोड़ा- सा दिशा-निर्देश देना है। राह तो वो खुद तलाश लेगा। इसीलिए एक कुशल मार्ग-प्रदर्शक गुरु की आवश्यकता होती है। जो ऐसे हीरों की परख कर सके। उनकी रुचियाँ, अभिरुचियाँ और योग्यताओं का सही मूल्यांकन और आकलन कर सके। और उसे प्रेरित करके उसकी प्रतिभा को समाजोपयोगी बनाए। उन्हें उचित दिशा-निर्देश दे। तभी हम कवि मैथिलीशरण गुप्त के उन शब्दों  को साकार कर सकेंगे-

*"मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती, भगवान भारत वर्ष में गूँजें हमारी भारती।"*

-Kalpana jain, The Iconic School, Bhopal

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