उत्तरदायित्व और सहयोग - ज्योति तड़ियाल


उत्तरदायित्व – उत्तरदायित्व जीवन में यदि न हो तो मनुष्य कभी आगे नहीं बढ़ सकता। हमसब प्रत्येक परिस्थिति और परिणाम के उत्तरदाई स्वयं होते हैं। हमारे ऊपर कई उत्तरदायित्व होते हैं, जिनका हम निर्वहन करते हैं। एक शिक्षिका के रूप में हमारी उत्तरदायित्व बहुत बढ़ जाते हैं। कक्षा कक्ष में विद्यार्थियों के भविष्य के उत्तरदाई हम स्वयं हो जाते हैं। हम उस विद्यार्थी के प्रति उत्तरदाई हैं जो हमारे दिए ज्ञान को आत्मसात कर जीवन में आगे बढ़ता है, हम उन माता पिता के प्रति भी उत्तरदाई हैं जो अपने अबोध बालकों को हमें सौंपते हैं, हम उस संस्था के प्रति भी उत्तरदाई हैं जहां हम कार्य करते हैं। वैसे ही विद्यार्थी भी उत्तरदाई होते हैं। कक्षा में जब कार्य दिया जाता है तो सभी उसे पूरी मेहनत से करते हैं क्योंकि वे भी उत्तरदाई हैं। इस प्रकार हम सभी उत्तरदायित्वों को पूर्ण करते हुए जीवन मे आगे बढ़ते जाते हैं और सफलता प्राप्त करते हैं।

सहयोग – सहयोग एक ऐसी भावना है जो समाज की आधारशिला है। सहयोग के बिना मानव समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। जीवन में सभी को सहयोग चाहिए। विद्यार्थी जीवन में सहयोग की भावना अधिक बलवती होती है। कक्षा में सहयोग से अनेक कठिनाइयां दूर हो जाती हैं। कक्षा के लिए बोर्ड बनाना हो या प्रार्थना सभा कराना इन गतिविधियों में प्रत्येक का सहयोग होता है। एक अध्यापिका के रूप में मुझे भी सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। यह सहयोग अपने सहकर्मियों से , प्रधानाचार्य से, विद्यालय परिवार से और बच्चों से भी प्राप्त होता है। सहयोग लेना जितना आवश्यक है उतना ही सहयोग देना। सभी को साथ लेकर चलना है ताकि कर्तव्य पथ पर कोई छूट न जाए।

सहयोग की इसी भावना पर गुप्त जी की काव्य पंक्तियां उद्धृत करना चाहूंगी –

है कार्य ऐसा कौन सा, साधे न जिसको एकता।
देती नहीं अदभुद अलौकिक शक्ति किसको एकता।
दो एक एकादश हुए, किसने नहीं देखे सुने।
हां शून्य के भीर योग से हैं अंक होते सौ गुने।

प्रेषक – ज्योति तड़ियाल
द दून गर्ल्स स्कूल।

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