एकता और देखभाल - ज्योति तड़ियाल

 

एकता और देखभाल
मिलजुलकर एक समूह में कार्यरत होना एकता की भावना है। हम सब एक साथ मिलजुलकर, एक दूसरे को समझते हुए कार्य करते हैं, तब यह एकता की भावना कहलाती है। एक साथ मिलकर किसी भी कार्य को सुंदरता और कुशलता से किया जा सकता है।

प्रसिद्ध काव्य पंक्तियां हैं –

दो एक एकादश हुए किसने नहीं देखे सुने,
हां शून्य के भी योग से हैं अंक होते सौ गुने।

अर्थ साफ हैं? एकता की भावना ही सर्वोपरि है और असंभव को भी संभव बना देती है। एक समूह में कार्यरत रहने की क्षमता ही एकता की भावना है। जब हम इस भावना को सीखते हैं तो सहयोग व सामंजस्य की भावनाओं का उदय भी हमारे भीतर होता है। रिश्ते सुदृढ़ होते हैं और आपसी मनमुटाव व झगड़े की संभावनाएं क्षीण होती जाती है। कक्षा कक्ष में भी यह एकता की भावना प्रायः विद्यार्थियों के मध्य बलवती रहती है। इसका उदाहरण अक्सर हमें दृष्टिगत होता है । जब कभी कक्षा में कोई भी परीक्षा का दिन निश्चित होना हो । वैसे यह भावना सकारात्मक ही है क्योंकि विद्यार्थी अपने मनोनुकूल समय प्राप्त कर लेते हैं। कक्षा कक्ष में निश्चित तौर पर यह एकता का भाव शांत अवस्था में रहकर अप्रत्याशित प्रभाव डालता है।

सहायता

जिसे चिंता करना, देखभाल करना भी कहते हैं। दूसरों की सहायता करना भी इसी श्रेणी में आता है। शारीरिक व भावनात्मक रूप से दूसरों की सहायता करना भी इसी श्रेणी में आता है। जब भी हम कुछ कार्य करने के इच्छुक होते हैं तो उसे पूर्ण समर्पण भाव से करते हैं, उस समय हमारा मन मस्तिष्क इसी में एकाग्र रहता है। एक सीधा सरल हृदय सदैव दूसरों की भलाई में रत रहता है। दूसरों के लिए परोपकार की यह भावना इतनी महत्वपूर्ण है कि १८ पुराणों में महर्षि व्यास ने कहा है –

अष्टादश पुराणेशु व्यासस्य वचन द्वायम।
परोपकाराय पुण्यया। पापय परपीडनम।।

कक्षा कक्ष में भी यह भावना सभी को प्रेरणा देती है और आगे बढ़ाती है। प्रत्येक विद्यार्थी एक दूसरे की चिंता करता है और सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने का प्रयास करता है। देखभाल की यह भावना कई स्तरों पर दिखाई देती है, जहां मित्रता, निस्वर्थता, सकारात्मकता आपस में जुड़ी रहती है। इस प्रकार आदर्श विद्यालय सहयोग की भावना पर आधारित होता है, जहां सभी स्तरों पर सहयोग दिखाई देता है और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

ज्योति तड़ियाल 
दून गर्ल्स स्कूल

Blog Archive