उषा पंवार:आत्मविश्वास से बोलना

केयूराणि भूषयन्ति पुरुषं हारा चन्द्रोज्वला:
स्नानं विलेपनं कुसुमं नालकृंता मूर्धजा:
वाण्येका समलकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततम्केका वाग्भूषणम भूषणमं।।

बाजुबंद पुरुष को शोभित नहीं करते और हीं चंद्रमा के समान हार, स्नान, चन्दन, फूल और सजे हुए केश शोभा बढ़ाते हैं। केवल सुसंस्कृत प्रकार से धारण की हुई एक वाणी ही उसकी शोभा बढ़ाती हैं साधारण आभूषण नष्ट हो जाते है, वाणी ही सनातन आभूषण हैं।

मनुष्य की वाणी में इतनी शक्ति होती हैं कि वह पूरे राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। वाणी में इतनी शक्ति है कि किसी का दिल भी जीत सकते हैं मनुष्य को बचपन से ही हर स्तर पर , प्रत्येक क्षेत्र में बोलना ही पड़ता हैं जो इन्सान बोलना सीख गया वह प्रत्येक क्षेत्र में जिन्दगी में सफल हो सकते है। वाणी में अपार शक्ति है।

जो भी शब्द बोले पूरी तरह से स्पष्ट हो साफ़ हो। स्पष्ट शब्द जल्दी दूसरो को ज्यादा समझ सकें। बोली में मधुरता हो। शब्दों में भाव होने के साथ स्पष्ट उच्चारण से बोले। आज का युग तकनीकी युग है। आवाज़ को रिकार्ड कर के बोले। आत्मविश्वास के साथ अपने विचारों को धीरे धीरे और सावधानी से बोले। एक सर्वश्रेष्ठ बोलने वाले को सबसे पहले सर्वश्रेष्ठ सुनने वाला होना चाहिए। बोलना सुनना सभी क्षेत्रों में होते हैं। अधिक से अधिक पुस्तकें पढ़नी चाहिए जिससे ज्ञान बढ़े और अधिक विचार आयेंगे और विश्वास के साथ बोल सके।

छोटे बच्चे पढ ना लिखना शुरू कर ने से बहुत पहले सुनने और देखकर बोलने लगते हैं, वे सीखते हैं कि बोलकर वे अपनी जरूरतों और इच्छाओं को व्यक्त कर सकते हैं। खेलों एवं अनेक रंगीन चित्रों, वस्तुओं को देखकर बच्चो में भाषा कौशल से सुनने, बोलने के अवसर मिलते हैं। अन्य गतिविधियों, खेलों, समूह में बातचीत करने के माध्यम से बच्चों में ध्यानपूर्वक सुनने सुनकर निर्देश का पालन करने और बेझिझक बोलने के गुर को बढ़ावा दे सकते हैं। बच्चों के बोलने के उच्चारण में स्पष्टता और शुद्धता लाना कहानियों, रंगीन चित्रों के माध्यम से शब्दकोश बढ़ाया जा सकता हैं। बातचीत मानव विकास का हिस्सा है जो सोचने ,विचारने, सीखने में हमारी मदद करती हैं।

जैसे किसी शिक्षक द्वारा छात्र को कुछ प्रश्न पूछे जाने पर छात्र द्वारा उस प्रश्न का उत्तर देना चाहे वह गलत हो परन्तु छात्र द्वारा आत्मविश्वास से बोलने का प्रयास किया हैं उन्हें प्रोत्सहित करना चाहिए बोलने से ही गुण अवगुण का पता चलता है। जिस व्यक्ति में आत्म विश्वास से बोलने की कला होती है वह दुनिया के सामने अपनी बात को प्रभावी तरीके से पेश कर पाता है जिसकी बातचीत में नम्रता, मिठास, प्रसन्नता, दया और प्रोत्साहन होता है असल मायने में वही व्यक्ति अच्छा बोलने वाला (वक्ता)होता है। तौल मौल के बोल का पालन होना चाहिए।

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए
औरन  को शीतल करे, आपहू शीतल होए।
Usha Panwar, The Fabindia School
upr4fab@gmail.com

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