कृष्ण गोपाल : सम्भाषणं

अभिव्यक्ति के मुख्यतः दो माध्यम है - लिखित और मौखिक।  तीसरा माध्यम संकेत हैकिन्तु संकेतों द्वारा अभिव्यक्ति पूर्णतः स्पष्ट नहीं होती।  अतः अभिव्यक्ति लिखित या मौखिक माध्यम से ही स्पष्ट हो पाती है।  मौखिक का अर्थ है व्यक्ति अपनी बात बोलकर अन्य तक पहुँचाए।  यदि कोई ऐसा करता हैकिसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह तक अपनी बात पहुँचाना चाहता है तो यह आवश्यक हो जाता है कि वक्ता का सम्प्रेषण प्रभावी हो अन्यथा लोगों को बाँधकर रख पाना मुश्किल है। 

व्यक्ति समूह को अपने विषय से जोड़ने के लिए वक्ता के पास बोलने की सामग्री उचित मात्रा और गुणवत्तापूर्ण होनी चाहिए।  वक्ता के पास प्रश्नों के जवाब भी होने चाहिए क्योंकि श्रोता अपनी जिज्ञासा शांत करने हेतु अथवा अपना मत रखने हेतु प्रश्न भी कर सकता है।  विभिन्न विषयों से जुड़ी पुस्तकों के पठन से ज्ञानार्जन किया जा सकता है।  छोटे समूहों में चर्चा करके भी जानकारी बढ़ाई जा सकती है। किसी वक्ता के वक्तव्य को रूचि पूर्वक सुनकर भी अपना ज्ञान-कोश बढ़ा सकते है। इसलिए धैर्य धारण करना पड़ेगा, उग्रता से किसी बात को बोलकर सब विफल नहीं करना चाहिए। 

आत्मविश्वास भी परमावश्यक है।  यदि बोलने का आत्मविश्वास नहीं है तो ज्ञान का भंडार होकर भी सब व्यर्थ है।  छोटे समूह में अपने वक्तव्य देकर श्रोताओं से अपने विषय में राय लेनी चाहिए कि किसी प्रकार की कोई कमी तो नहीं रही यदि रही तो आगे उसका सुधार किया जाए।  सम्भाषण हमेशा प्रभावी होना चाहिए।  इस हेतु को साधने के परिश्रम भी करना पड़े।  जब तक श्रोताओं पर छाप छोड़े तब तक सम्भाषण उत्तम कोटि का नहीं कहा जा सकता।  
Krishan Gopal
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