Thursday, December 5, 2019

उषा पंवार: खेल - एक जीवन

           
ना हारना जरूरी है ना जीतना जरूरी है,
ये ज़िन्दगी एक खेल है खेलना जरूरी है।।

खेल-खेल में बच्चे बहुत कुछ सीख जाते हैं। खेल- खेल में भाषा का विकास भी होता हैं। खेल ऐसे होने चाहिए जिससे बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही विकास हो। खेल से जीवन में एक नया जोश, उत्साह, उमंग पैदा होते हैं। अध्यापक और अभिभावक बच्चों के साथ बच्चा बनकर ही खेलना चाहिए जिससे खेल में जिज्ञासा बढ़े और खुशी मिले। विद्यार्थी पढ़ाई के साथ खेलों को बराबर का महत्व देने से प्राय: कुशाग्र बुद्धि के होते हैं।

                    खेल अधिकतर काल्पनिक भी खेले जाने चाहिए जिससे बच्चों का बौद्धिक विकास होता हैं और समस्या का समाधान करने की क्षमता बढ़ती हैं जैसे कोई बच्चा नाटक में डॉक्टर की भूमिका निभा रहा है तो वह अपने आप में कल्पना करता है कि वह सबसे अच्छा डॉक्टर है इससे नए-नए शब्दों का प्रयोग करते हैं और सोचने की शक्ति बढ़ती हैं।

                  विद्यालय में बच्चों को ऐसी गतिविधियाँ करवानी चाहिए जिससे एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य करना और उनमें ऐसी प्रतिभा और संस्कारों का विकास हो जिसके द्वारा बच्चें जिम्मेदारी एवं आदर करना सीखे। खेल नाटकीय रूप से भी खेला जाना चाहिए जिससे बच्चे नि:संकोच, बेझिझक बोलना एवं भाग लेना सीखे। प्रत्येक विद्यार्थी पढ़ाई के दौरान खुद को ज्यादा समय तक पढाई से नहीं जोड़ पाता है और किताबी कीड़ा बना रहता है जिससे विद्यार्थी नीरस, उबाऊपन, थकान, तनाव महसूस करते हैं अतः इन सब को दूर करने के लिए खेलों से जुड़े रहना जरूरी है।

                 मनोरंजन का मुख्य साधन शारीरिक व मानसिक गतिविधियों से संबन्धित खेल या नाटक ही प्रमुख हैं जैसे पुस्तक के पाठ को समझाने के लिए विद्यार्थियों को पात्र बनाकर नाटक के जरिए खेल करवा सकते हैं जिससे बच्चे आगे आकर बोलना सीखते हैं।

               खेलों के द्वारा बच्चा अपने आप को परिवार में, विद्यालय में, समूह में, समाज में किस परिस्थिति में किस प्रकार से अपने आप को प्रस्तुत करना है यह सीख जाता है इसी वजह से उसकी एक अलग ही छवि बन जाती हैं और समाज में उसका अलग ही व्यक्तित्व तय हो जाता हैं जिस कारण लोग उससे मदद प्राप्त करना चाहते हैं। जैसे खेल में हार-जीत होती है अलग अलग परिस्थितियाँ होती हैं उसी प्रकार जब उसके जीवन में इस तरह की दुविधाएँ आती हैं उतार-चढ़ाव आते हैं सुख-दुःख आते हैं तो वह अपने आप को आसानी से उस परिस्थिति से बचा सकता हैं या उसका समाधान कर सकता है। इसका हमारे सामने उदाहरण के तौर पर बहुत से खिलाड़ी हैं जो एक छोटे से शुरू होकर बड़े खिलाड़ियों के रूप में प्रकट होते हैं।

ज़िन्दगी खेलती भी उसी के साथ है जो खिलाड़ी बेहतरीन होता है,
दर्द सबके एक से है मगर हौसले सबके अलग अलग है,
कोई हताश होकर बिखर जाता है तो कोई संघर्ष करके निखर जाता हैं।।
Usha Panwar
The Fabindia School
upr4fab@gmail.com

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