कृष्ण गोपाल: सतत लेखन

Krishna Gopal Dave
The Fabindia School
जब हम कला की बात करते हैं तब कई सारी कलाओं का ख़याल जहन में आता है।  लेखन भी एक कला है।  हर कोई इस कला में सिद्ध-हस्त हो ये आवश्यक नहीं है।  किन्तु ये संभव है कि यदि कोई पठन का अभ्यासी है तो लेखन में भी कुशाग्र होगा।  संचय किए हुए ज्ञान को ही लेखन के रूप में अभिव्यक्त करते है अर्थात लेखन कला पठन से जुड़ी हुई है।  नियमित लेखन तथा पठन व्यक्ति को कुशल लेखक बना लेती है।  

लेखन से किसी भी व्यक्ति में अभिव्यक्ति की कुशलता बढ़ती है। हो सकता है शुरुआती दौर में विषय और भाषा की पकड़ इतनी मजबूत हो, परन्तु इससे घबराना नहीं चाहिए, अविरल लेखन ही भाषा और विषय-वस्तु में प्रगाढ़ता लाती है।  

लेखन को बेहतर बनाने के लिए छोटे-छोटे वाक्यों में, सरलतम शब्दों का प्रयोग वांछित है।  जटिल वाक्य भाषा की निपुणता तो उजागर करेंगे परन्तु संभव है पाठक को विषय-वस्तु का बोध हो।  लेखक का दायित्व है अपनी अभिव्यक्ति इस प्रकार करे कि कथ्य स्पष्ट हो जाए। 

विद्यार्थी जीवन में इसका प्रयास करना चाहिए क्योंकि इस समय की गई त्रुटियों को पकड़ने तथा मार्गदर्शन करने के लिए उनके शिक्षक मौजूद हैं।  कुछ समय अंतराल से वह अभ्यस्त हो सकता है।
अतः अपने रिक्त समय का सदुपयोग करते हुए पठन और लेखन करते रहे।

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