इस आकाश, में,
कहीं न कहीं ,
हर टूटते तारे के साथ,
कोई न कोई
अपनी इच्छा बताता होगा।
अलग लकीरें, अलग हैं रंग,
कुछ अलग ही कहानी,
कहती है हर कलम
संगीत , कला, साहित्य
का संगम ,
हर कोई देखता है,
अपने तरीके से
हर रचना कहीं
न कहीं दिखाती है ,
एक प्रभाव, हर देखने
वाले पर
जो उस रचना के साथ,
रचनाकार के
जीवन को भी
जी आता है ,
कुछ पलों के लिए ,
और समेट लेता,
किसी और के
सपनों को
अपनी आँखों में ।।
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Dear Sir and Ma'am
I wrote some lines on today's session.
That session was wonderful. I tried to conclude with a poem, I hope you will like it.
SUMAN SINGH
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