गलती करना मनुष्य होने की पहचान है। कोई भी व्यक्ति बिल्कुल परिपूर्ण नहीं होता। हम सभी जीवन में कभी न कभी गलती करते हैं — छोटी हो या बड़ी।
लेकिन सबसे ज़रूरी बात यह है कि हम अपनी गलती को स्वीकार करें। जब हम अपनी गलती मानते हैं, तो हम और अधिक ईमानदार, ज़िम्मेदार और समझदार बनते हैं।
गलती को छुपाने या दूसरों पर थोपने से रिश्ते बिगड़ते हैं। लेकिन जब हम यह कह पाते हैं — "हाँ, यह मेरी गलती थी," तो सामने वाला न केवल हमें माफ करता है बल्कि हमारा सम्मान भी करता है।
गलती मानने से हम झुकते नहीं, बल्कि और ऊँचे उठते हैं।
एक बार मैंने एक छोटी-सी गलती की थी, जिसे पहले मैं छुपाना चाहती थी। लेकिन बाद में जब मैंने उसे स्वीकार किया, तो न केवल मुझे माफ़ी मिली, बल्कि सभी ने मेरी ईमानदारी की सराहना भी की। उस दिन मुझे एहसास हुआ कि गलती करना गलत नहीं है, गलत है उसे न मानना।
इसलिए मैं मानती हूँ कि हमें अपनी गलतियों से भागने के बजाय, उन्हें अपनाना चाहिए — और कोशिश करनी चाहिए कि वही गलती दोबारा न दोहराएँ।
हर गलती एक नया पाठ होती है, जो हमें और बेहतर, और मजबूत इंसान बनाती है।
इस पाठ से मैंने सीखा है कि गलती करना कोई शर्म की बात नहीं है, लेकिन उसे न मानना और उस पर कुछ न सीखना — यह सबसे बड़ी गलती होती है।
हम हर गलती से कुछ न कुछ सीख सकते हैं; बस ज़रूरत है उसे दिल से अपनाने की।
"जो अपनी गलती मानने का साहस रखता है, वही ज़िंदगी में सबसे बड़ा बदलाव ला सकता है।"
– साक्षी पाल
No comments:
Post a Comment