Monday, April 28, 2025

"गलतियाँ करो, बार-बार करो, लेकिन उन्हें स्वीकार करके कुछ बेहतरीन करो।"- Arthur Foot Academy

 

गलतियाँ तो हर इंसान से होती हैं, क्योंकि जब भी हम कुछ नया करने की कोशिश करते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि गलतियाँ होंगी। लेकिन हर इंसान अपनी गलती को स्वीकार नहीं कर पाता।

इस पाठ को पढ़ते समय मुझे अपने बचपन की एक बात याद आ गई — जब मैं कक्षा 5 में पढ़ती थी।
हमारे स्कूल में एक बहुत बड़ा बगीचा था जिसमें अनेक प्रकार के फल और सब्जियाँ उगाई जाती थीं।
उस बगीचे की देखरेख की ज़िम्मेदारी हम छात्रों को दी गई थी और हम भी उस ज़िम्मेदारी को अच्छे से निभाते थे।

लेकिन एक दिन शाम को स्कूल में खेलते समय न जाने हमारे मन में क्या आया, और हमने स्कूल के बगीचे से फल-सब्जियाँ चुराकर अपने घर ले आए।
घर पर बहुत डाँट पड़ी। उसी रात मुझे एहसास हुआ कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। मुझे सारी रात नींद नहीं आई।

मैं सोचती रही कि अगर मैंने स्कूल में यह बात बता दी, तो सबके सामने कितनी बेइज्जती होगी और हमारे टीचर्स का जो हम पर विश्वास है, वह भी टूट जाएगा।
लेकिन फिर मैंने खुद से कहा:
"जब इतनी बड़ी गलती की है, तो उसे स्वीकार करने की हिम्मत भी होनी चाहिए।"

सुबह होते ही, मैंने जो कुछ सामान चुराया था, उसे स्कूल वापस ले गई।
215 बच्चों और सभी टीचर्स के सामने बहुत हिम्मत जुटाकर मैं खड़ी हुई और स्वीकार किया कि यह सब मैंने चुराया था।
मैंने कहा, “आप मुझे जो भी सजा देना चाहें, दे सकते हैं।”

एक मिनट के लिए तो पूरा माहौल शांत हो गया... लेकिन उसके बाद जो मेरे लिए तालियाँ बजीं —
वे तालियाँ इसलिए नहीं बजीं कि मैंने चोरी की थी, बल्कि इसलिए कि मैंने अपनी गलती को स्वीकार किया था।

इस अनुभव से मैंने दो बातें सीखी:

  1. जब भी हमसे गलती हो, तो उससे भागना नहीं चाहिए — बल्कि उसे दिल से स्वीकार करना चाहिए।

  2. गुरु और शिष्य का रिश्ता दुनिया में सबसे अलग, पवित्र और अनोखा होता है।

– ललिता पाल

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