"नाम जपो, सेवा करो और सच्चा दिल रखो। हर दिल में रब बसता है, ये बात समझो। न कोई हिन्दू, न कोई मुसलमान, सबका मालिक एक है।"
गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु और महान संत थे जिन्होंने संसार को मानवता, समानता और ईश्वर भक्ति का संदेश दिया। उनका जीवन और उपदेश आज भी हर युग और हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने सिखाया कि ईश्वर एक हैं और हर जगह विद्यमान हैं। वे कर्म, सच्चाई और प्रेम से भरे जीवन की वकालत करते थे। वे जाति, पाति भेदभाव और अंधविश्वास का विरोध करते थे।
गुरु नानक जी ने अपने जीवन में चार बड़ी यात्राएं कीं, जिन्हें "उदासियां" कहा जाता है। यात्राओं का उद्देश्य लोगों को एक ईश्वर का संदेश देना था, धर्म के नाम पर हो रहे भेदभाव और अंधविश्वास को मिटाना था। उन्होंने अपनी यात्राओं में मंदिरों, मठों और बाद में बने गुरुद्वारों में जाकर उपदेश दिया। माना जाता है कि उन्होंने करीब 28 साल तक चार बड़ी यात्राएं कीं, जिन्हें उदासियां कहा जाता है। वे सैकड़ों धार्मिक स्थलों, गुरुद्वारों, मंदिरों, मस्जिदों और अनेक दरगाहों पर भी गए।
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पहली उदासी पूर्व दिशा - हरिद्वार, जहाँ उन्होंने जल उल्टी दिशा में फेंका।गया, काशी (वाराणसी), पटना, असम और बंगाल में दर्शन किए और कई संतों से भेंट की।
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दूसरी उदासी दक्षिण दिशा - उज्जैन, नर्मदा तट, श्रीरामेश्वर, तमिलनाडु।
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तीसरी उदासी पश्चिमोत्तर दिशा - काबुल, पेशावर, कश्मीर, सियालकोट, तिब्बत।
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चौथी उदासी - मक्का, मुस्लिम तीर्थ स्थल, मदीना। यहाँ उन्होंने मुस्लिम फकीरों और पीरों से धर्म और ईश्वर पर चर्चा की।
अंतिम उदासी पंजाब और आसपास - करतारपुर, जहाँ उन्होंने अंतिम समय बिताया। सुल्तानपुर लोधी, अमृतसर, गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर। कहा जाता है कि यहीं 22 दिसंबर 1539 को गुरु नानक देव जी ज्योति-जोति समा गए।
मुझे गुरु नानक जी के बारे में जो हमने क्लास में सुना और उनकी वीडियो देखी, वह बहुत अच्छा लगा। और फिर उसके बारे में और जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया। इससे मैंने यह सीखा कि हम सभी धर्मों को समान मानना चाहिए।
- ललिता पाल
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