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संवेदना अध्याय से हमने यह सीखा कि हमें सब के दुख को समझना चाहिए।
संवेदना केवल एक भावना नहीं है, यह इंसानियत की नींव है। जब हम किसी को दुख में देखते हैं और हम उसके दुख को महसूस करते हैं तो यह संवेदना कहलाती है और हमें दूसरों से जोड़ती है emotionally, morally and socially. हमारे समाज में संवेदना की बहुत जरूरत है क्योंकि technology और fast-paced life ने हमें कहीं ना कहीं emotionally distant बना दिया है। लेकिन एक छोटी सी सहानुभूति की भावना, किसी का हाल पूछ लेना या जरूरतमंद की मदद करना – यह सब संवेदना के रूप हैं।
संवेदना एक मानवीय गुण है जो दूसरों के दुःख-सुख को महसूस करने की शक्ति देता है। यह केवल सहानुभूति नहीं है, बल्कि दूसरों की पीड़ा को अपने भीतर अनुभव करने की प्रक्रिया है। जब हम किसी को कष्ट में देखते हैं और उनके लिए कुछ करने की प्रेरणा हमारे भीतर होती है, वह संवेदना कहलाती है।
संवेदनशीलता एक समाज को मानवीय बनाती है। यदि हम संवेदनहीन हो जाएं, तो हम एक मशीन जैसे हो जाएंगे, जिनके पास भावनाओं के लिए कोई स्थान नहीं होगा। संवेदना से ही करुणा, दया और सेवा जैसे गुण जन्म लेते हैं।
आज के समय में जब समाज में आत्मकेंद्रिता बढ़ रही है, संवेदना की अधिक आवश्यकता है। चाहे वह एक भूखे इंसान को भोजन देना हो, किसी दुःखी मित्र को सुनना हो या किसी अनजान की मदद करना हो – ये सभी कार्य हमारी संवेदनशीलता को दर्शाते हैं।
Sensitivity is not weakness, it is a strength that connects hearts...!
"Sensitivity is the bridge that connects hearts and makes the world a little better."
— रीना देवी
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