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पानी बोला धीरे से,
"मैं हूँ जीवन की आस,
मुझसे ही हर चीज़ चले,
मुझसे ही है हर सांस।"
नदी, झरना, ताल बना,
कभी बना मैं बर्फ का तन,
बादल बनकर उड़ता फिरूँ,
बरस पड़ूँ जब हो सावन।
पौधों को मैं सींचता हूँ,
प्यास बुझाऊँ हर जीव की,
माँ के जैसे लाड़ करूँ मैं,
न हो कमी किसी चीज़ की।
पर अब मैं हूँ थोड़ा दुखी,
मुझको लोग समझ न पाए ,
बर्बादी की हद कर डाली,
बूँद-बूँद को तरसाए।
संभालो मुझको प्यार से
समझाता हूँ हर बार,
ना रहा अगर मै
धरती पर तो जीवन
जाओगे हार।
सुमन सिंह
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