"यात्रा सिर्फ स्थानों की नहीं होती, यह आत्मा की गहराइयों में उतरने का माध्यम भी बन जाती है। गुरु नानक देव जी की यात्राएँ हमें सिखाती हैं कि सच्चाइयों, प्रेम और एकता की खोज के लिए सीमाएँ कोई मायने नहीं रखतीं।"
पाठ ‘प्रवास’ से मैंने सीखा है कि कैसे गुरु नानक देव जी ने अपनी यात्राओं के दौरान अलग-अलग धर्मों, जातियों के लोगों से मुलाकात की, जिससे सीखने को मिलता है कि "ईश्वर एक है और सभी इंसान बराबर हैं, चाहे वे किसी भी धर्म या जाति से हों। हमें सभी के साथ समानता और भाईचारे का व्यवहार करना चाहिए।"
गुरु नानक जी ने अपने जीवन में लगभग 150 से अधिक स्थानों पर यात्रा की, जिनका उद्देश्य था:
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सभी के साथ समानता और भाइचारे से व्यवहार करना और समझना कि सबका ईश्वर एक है।
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अंधविश्वास और जात-पात के खिलाफ बोलना।
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सभी धर्मों के लोगों के साथ बातचीत करके उनकी भावनाओं को समझना, उनका हल निकालना या उनकी मदद करना।
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एकता का संदेश देना; गुरु नानक जी ने सभी धर्मों, जातियों के लोगों से मिलकर एकता, भाइचारे और प्रेम का संदेश दिया।
प्रवास हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हमारे जीवन के पड़ाव, चाहे वे कितने भी छोटे क्यों न हों, वे कभी नहीं भूल सकते हैं, बल्कि हर रुके हुए ठहराव को एक प्रेरणा में बदला जा सकता है।
प्रवास एक ऐसा संदेश है जो आज भी हमारे भीतर झांकने और सुधारकर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
"गुरु नानक जी ने सिखाया है कि ईश्वर न तो किसी एक धर्म में सीमित है, न ही किसी एक स्थान में है, वह सबमें और हर जगह मौजूद है।"
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