Honesty and Respect - Triumph DGS

                                                                                                                                                 
            "ईमान पर दुनिया कायम है, ईमान बिना सम्मान नहीं |                                               ये राह सच में मुश्किल है, इस पर चलना आसान नहीं |"

मनुष्य के लिए जीवन में ईमानदार होना उसके अस्तित्व को बनाए रखने के लिए आवश्यक है और दूसरों से सम्मान प्राप्त करना आज इंसान के लिए मुश्किल नहीं है, परन्तु क्या हम स्वयं की नज़रों में स्वयं को सम्मान दे सकते हैं?? यह जानना हमारे लिए सबसे आवश्यक है| 
(एक संवाद ईमानदारी और सम्मान के बीच) 

ईमानदारी : हे सम्मान ! तुम कहाँ जा रहे हो ?

सम्मान : अपने अस्तित्व की खोज में |

ईमानदारी : परन्तु मैं तो तुम्हें हर जगह महसूस कर सकती हूँ |

          जरा अपनी नजरें दौड़ाओ और देखो, हर नौकर अपने मालिक का सम्मान करता है | 

          दुकानदार ग्राहक का सम्मान करता है |

          और हाँ ! सबसे बड़ी बात, हर शिष्य अपने गुरु का सम्मान करता है |

सम्मान : परन्तु वह मैं नहीं !!! वह डर है, जिसने मेरा स्थान ले लिया है |

ईमानदारी : डर ??? यह कैसे सम्भव है ? ऐसा तुमने कैसे सोचा? ऐसा सोचने पर तुम्हें किस बात ने विवश किया?

सम्मान : तुमने!!!

ईमानदारी : मैंने!!! परन्तु कैसे ???

सम्मान : लोग तुम्हारे रास्ते पर नहीं चलना चाहते क्योंकि तुम्हारा अनुसरण करना बहुत कठिन है | तुम्हारे पीछे चलने  पर लोगों को दर्द और दुख का सामना करना पड़ता है| अत: लोग तुम्हें और मुझे पीछे छोड़ कर किसी और रास्ते पर चलने लगते है, जिसे तुम मेरा नाम दे रहे हो| बार-बार रास्ते से भटकने के कारण मनुष्य अपनी पहचान खो रहा है और अपने जीवन की खुशियाँ भी खोता जा रहा है |

ईमानदारी : क्या कोई रास्ता ऐसा है, जिससे मनुष्य तुम्हें और मुझे छोड़े बिना अपनी मंजिल पा ले ?

सम्मान : विश्वास और सहनशीलता दो ऐसी राहें हैं जिस पर चल कर मनुष्य हमारे साथ-साथ चलते-चलते अपनी खुशियाँ पा सकता है |

ईमानदारी : तो चलो प्रिय सम्मान ! विश्वास(trust) और सहनशीलता(tolerance) को भी अपने साथ ले चलते है, ताकि मनुष्य अपने जीवन की सच्ची खुशी(true happiness) को प्राप्त कर सके|   

जी हाँ!! यही सत्य है कि ईमानदारी की राह पर चलना कठिन है,परन्तु यदि हम ईमानदारी(HONESTY) का मार्ग अपनाएँगे तभी सम्मान(RESPECT)के अधिकारी होंगे और ईमानदारी और सम्मान को साथ लेकर चलने पर ही हम जीवन की सच्ची खुशी प्राप्त कर सकते हैं|ऑनलाइन कक्षा में बैठने वाले एक बच्चे के पास झूठ बोलने के सौ बहाने हो सकते थे, फिर भी उस बच्चे ने सज़ा की परवाह किए बिना, या सब क्या सोचेंगे, की परवाह किए बिना सत्य का मार्ग अपनाया और कक्षा में देरी से लॉगिन करने का कारण बताया कि वह देर रात तक अपने अभिभावकों के साथ बैठ कर चलचित्र का आनन्द ले रही थी| एक छोटी सी सीख भी हमारे जीवन की काया पलट कर सकती है |

ईमानदारी या सच्चाई वह नहीं जो हम दूसरों के सामने दिखाएँ परन्तु ईमानदारी और सच्चाई वह है, जिसका पालन हम तब भी करें जब हमें कोई देख न रहा हो| दूसरों में सुधार लाने से पहले क्यों न हम स्वयं में सुधार लाएँ| दिल पर हाथ रख कर बताइए कि क्या हम शत प्रतिशत सत्यवादी हैं? ईमानदार हैं? अब बताइए क्या हम अपने जीवन में शत प्रतिशत सम्मान के अधिकारी हैं?  एक किस्सा सुनाती हूँ |

                                                                                    यह कहानी है गाँव के एक छोटे से विद्यालय में पढ़ने वाली छठी कक्षा की एक भोली-भाली सी बच्ची विद्या (काल्पनिक नाम) की  जो सिक्के के दो पहलुओं के साथ जीवन में आगे बढ़ ही नहीं पा रही थी | सिक्के के वो दो पहलू थे- घर का सीधा- साधा वातावरण जहाँ यह समझाया जाता था कि प्रकृति और ईश्वर, सत्य और असत्य सब ऊपर से बैठा वह मालिक हर समय देख रहा है और दूसरी ओर विद्यालय का माहोल जहाँ साथ के सहपाठी प्रतियोगी बन कर साम,दाम,दंड और भेद की नीति के साथ हर समय अपने को सिद्ध करने के लिए प्रतियोगिता के लिए तैयार हैं |  बेचारी विद्या से धीरे-धीरे हर चीज छिनने लगी | उसका आत्मविश्वास , आत्मसम्मान , उसकी पढ़ाई , सब कुछ!!! धीरे- धीरे भागमभाग की इस दौड़ में विद्या कहीं खोने लगी और ऐसे लगने लगा कि क्या सच में सच्चाई की राह इतनी कठिन है कि हँसती-खेलती , फूलती-फलती एक बगिया यूँ मुरझा जाएगी ?? क्या बचपन से असत्य पर सत्य की कथा कहानियाँ जो सुनी वो सब बेकार हो जाएँगी ??

पर कहते हैं न कि ईश्वर भी सदा सत्य का ही साथ देते हैं, और सत्य ही सम्मान का जन्मदाता है |

जल्द ही विद्या के जीवन में एक नया पन्ना जुड़ा | विद्यालय में एक नई अध्यापिका आईं जो दूसरों की नजर में सिर्फ गणित की अध्यापिका थीं परंतु विद्या के लिए नव जीवन दात्री के समान बन कर आईं| चाहे कोई बड़ा हो या छोटा , शिष्य हो या गुरु, प्रधानाध्यापिका हों या चपरासी , वह केवल ईमानदार का ही पक्ष लेती थीं | विद्या की और उनकी राहें विद्या को समान लगीं, इसलिए धीरे-धीरे वे दोनों एक दूसरे को समझने लगे और विद्या फिर से एक बार मुस्कराती हुई बगिया के जैसी खिली-खिली सी हो गई |

“ एक सच्चा रिश्ता जल के समान होता है – न उसका कोई रंग और न स्वाद परन्तु फिर भी जीवन के वहन के लिए अति आवश्यक है | वहीं  सच्चे रिश्ते भी सम्मान पाते हैं जहाँ रिश्तों में ईमानदारी होती है | ” 

Proudly created by the inspiring team of Triumph DGS @ The Doon Girls' School, Dehradun - Prachi Jain, Mansi Sondhi Arora, Ritika Chandani, Shalu Rawat, Mohini Bohra Chauhan and Prachi Parashar

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