'स्कूल सिर्फ़ स्कूल नहीं होते।' - Lakshmi Ghosh

औपचारिक शिक्षा की शुरुआत शायद लिखने की शुरुआत के तुरंत बाद लगभग 2000 ईसा पूर्व के मिस्र में हुई थी, कि लिख पाना इज़ाद करने के बाद उसे अगली पीढ़ियों तक पहुँचाया जाना सबसे ज़्यादा ज़रूरी था।

कहा जाता है कि स्कूल अपने आधुनिक रूप को सबसे पहले 1635 में अमरीका के बॉस्टन लैटिन स्कूल के द्वारा प्राप्त हुए। हालांकि विभिन्न देशों के इतिहास अलग अलग बात कहते हैं।


शुरुआती स्कूल केवल शासकों और उनके वंशजों को शिक्षित करने के लिए बने थे मगर धीरे धीरे वह सर्व सामान्य के हाथ आ सके। 


औपचारिक, अनौपचारिक, गुरुकुल पद्धति या अन्तर्राष्ट्रीय प्रणाली से संचालित, रॉयल या पब्लिक, ग्लोबल या नेशनल, ऑफ लाइन या ऑन लाइन स्कूल हमेशा से भविष्य संचालित करने वाली पीढ़ी के सबसे करीब रहे हैं और इसलिए उनका स्वरूप भी विकसित होता आया है।


स्कूल पढ़ने-पढ़ाने व सीखने-सिखाने को ज़रूर बने हैं, मगर वह कदापि पढ़ने-पढ़ाने व सीखने-सिखाने तक सीमित नहीं हैं, स्कूल सिर्फ़ स्कूल नहीं हैं!


'स्कूल सिर्फ़ स्कूल नहीं होते।'


एक वह जो चुप चुप रहता था

एक वह जो सबसे ज़्यादा बोलता था

वह भी जो रोज़ हेरबैंड्स के लिए डाँट सुनती थी

और वह जो सब टीचर्स की फेवरेट थी

सब हैं घरों में बंद

सब हैं इंतज़ार के दस्तयाब

कि इनसे पूछें तो पाएँगे

स्कूल सिर्फ़ स्कूल नहीं होते


वह जिसे कहीं भी बिठा दो चुप न होता था

वह जिसे इनफर्मरी में बैठे रहना पसंद था

वह जो लंच में खाना खाए बिना खेलने दौड़ पड़ता था

वह जो पी ई टीचर को देखकर छुप जाती थी

सब हैं एक पर्दे के पीछे

सबकी आँखों में वही सवाल

कि हमें कब आज़ाद करोगे

हमारा आसमान, हमारा स्कूल कब लौटाओगे


वह जो साइन्स प्रॅक्टिकल्स डे का इंतज़ार करते थे

वह भी जो सबमिशन्स के दिन क्लास बंक करते थे

वह जो कल्चरल्स के रॉकस्टार्स थे

वह जो एडिटर्स क्लब की शोभा बढ़ाते थे

सबकी हैं अपनी अपनी इच्छाएँ, अपने अपने कारण

स्कूल तक लौटने के

कि स्कूल कब सिर्फ़ स्कूल होते हैं


वह जो एक्टिवीटीज़ को प्राथमिकता देते हैं

वह जो पब्लिक स्पीकिंग को सुधारना चाहते हैं

वह जो अकैडमिक्स से आगे कुछ नहीं सोच पाते

वह जो खेल जगत में मुकाम बनाना चाहते हैं

वह तुम हो मैं हूँ या आज की अबरकूल जनरेशन ज़ी या अल्फा हो

स्कूल के चार्म से कब कोई छूटा है

कि स्कूल चाहे कोई भी हों कैसे भी हों

मगर वह सिर्फ़ स्कूल नहीं होते


किसी की ज़िंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट,

किसी के बचपन के पहले प्यार के गवाह

किसी की दोस्ती की सौगातों के देनदार

किसी के सबसे यादगार क्षणों के साक्षी

स्कूल कभी सिर्फ़ स्कूल नहीं होते! 

स्कूल सिर्फ़ स्कूल नहीं होते


Lakshmi Tahiliani Ghosh, MPhil Chemistry, a post-graduate in Education and, an APS-CSB and CTET qualified teacher, TGT Science at Hyderabad for the last 6 years, worked as a lecturer for 2 years, and as a translator, content developer and editor in the Hindi language for 5 years.



Listen to the poem in Lakshmi's voice

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