Friendship and Hope - Triumph DGS

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Friendship and Hope (मित्रता और आशा)

ब्रह्मा, विष्णु और महेश से जगत की उत्पत्ति हुई है ऐसा हिन्दू धर्म में माना जाता है| विश्व की उत्पत्ति के लिए इस मित्रता से बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है| हमारा जन्म ही मित्रता से हुआ है| त्रिदेव की घनिष्ठ मित्रता और ब्रह्मांड की आशा ने ही सष्टि की व्युत्पत्ति की है |

मित्र शब्द की उत्पत्ति कहाँ से हुई?

ऋषि कश्यप और अदिति की नौंवीं तथा दसवीं संतान थे ‘मित्र’ तथा ‘वरुण’| मित्र देव का शासन सागर की गहराइयों और वरुण देव का समुद्र के ऊपरी क्षेत्रों पर माना गया है वेदों के अनुसार ऐसा भी माना जाता है कि मित्र के द्वारा दिन और वरुण के द्वारा रात होती है|

अर्थात् हम मित्र शब्द से यह अर्थ भी ले सकते हैं कि एक अच्छे मित्र को स्वयं में सागर की गहराइयों से भी अधिक गहन धीरता, सूक्ष्मता और संवेदनशीलता रखनी चाहिए| मित्र के द्वारा दिन अर्थात् उजाले की उत्पत्ति मानी गई | उजाला, प्रकाश जीवन में सभी सकारात्मक ऊर्जा(positive energy) के बारे में बताते हैं | अत: यदि हम स्वयं को किसी का मित्र कह रहे हैं तो हमारे अंदर इतना धैर्य होना लाज़मी है कि हम उसकी दुविधाओं के निवारणकर्ता बन जाएँ | कभी-कभी शांत और धैर्यवान श्रोता होना भी अच्छे मित्र के गुणों को दर्शाता है |

हम अपने इतिहास से सच्ची मित्रता की कितनी ही मिसालों को उठा कर देख सकते हैं | जैसे कृष्ण-सुदामा की मित्रता , कृष्ण- द्रौपदी की मित्रता , करण और दुर्योधन की मित्रता आदि आदि और इत्यादि | मित्रता उद्देश्य रहित होती है परन्तु आशा पर टिकी होती है | उदाहरणों में करण- कारण जो भी रहा हो परन्तु सच्ची मित्रता से अभिप्राय एवं उद्देश्य एक ही है- पथभ्रष्ट होने से बचाना , सही राह दिखाना , मदद के लिए तैयार रहना |

रामचरितमानस में कहा गया है-

कुपथ निवारि सुपथ चलावा | गुण प्रकटै अबगुणहि दुरावा |”

अर्थात् सच्चा मित्र वही है जो हमें गलत रास्ते से निकाल कर सच्चे और अच्छे रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है, अवगुणों को धुलवा कर गुणों में परिवर्तित करता है|

“निज दुख गिरि सम रज करि जाना| मित्रक दुख रज मेरु समाना ||”

 अर्थात् जो स्वयं के दुख को धूल के समान और मित्र के दुख को सुमेरु पर्वत के समान मान कर उसकी परेशानियों के निवारण में जुट जाए वही सच्चा मित्र है|

मित्रता और विश्वास इन दोनों नैतिक मूल्यों का उदाहरण देते हुए आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी कहते हैं- “विश्वासपात्र मित्र जीवन की औषधि है|” सच्चे मित्र की सलाह चाहे औषधि की तरह कटु हो सकती है परन्तु जिस प्रकार औषधियों से रोगमुक्ति प्राप्त होती है उसी प्रकार सच्चे और विश्वासपात्र मित्र कई प्रकार के मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाते है|

आशा मनुष्य की उन्नति को बढ़ाने में मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है | मित्रता बहुत नाजुक परन्तु भरोसेमंद संबंध है और एक सच्चे मित्र से आशा की जा सकती है कि वह अपने मित्र की भावनाओं की हमेशा परवाह करेगा, उसके भावों को समझेगा, कभी पिता या माता की भूमिका निभाएगा तो कभी भ्राता की|

हम अपने हृदय की कितनी बातें जो अपने परिवार से नहीं कर सकते हैं वह भी मित्र से कह कर परमानन्द की प्राप्ति करते हैं |

एक अध्यापक के रूप में मैं बच्चों की सच्ची मित्र बनकर और उन्हें अपने विश्वास में लेकर उनकी मानसिक समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करती हूँ| आज के समय में छोटे छोटे बच्चे भी मानसिक तनावों का शिकार हो जाते हैं, चाहे कारण पारिवारिक समस्याएँ हों या टेलिविज़न का प्रभाव या फिर आवासीय विद्यालय में बच्चों का आपस में एक दूसरे के साथ परिवार की तरह रहने की बात ही क्यों न हो | बच्चों को घर परिवार या विद्यालय में भी शिक्षा पाने से ज्यादा मित्रों की आवश्यकता अधिक है जो उन्हें समझे, उन्हें सुने , जिन पर वे बच्चे विश्वास कर सकें और उनकी छोटी छोटी समस्याओं का हल भी निकाल पाएँ | अत: एक अच्छा मित्र होने के नाते मैं यही कहना चाहूँगी - 

उम्मीद की दहलीज़ पर जब मित्रता ने रखा कदम

मिल गए पंख मुझे झूम उठा नीला गगन

ईश्वर के बनाए रिश्तों में सबसे अनोखा है दोस्ती का बंधन

स्नेह, विश्वास, समझ और आशा इसके हैं प्रमुख स्तम्भ

दोस्त की आँखों में देखी है एक आशा

खरा उतरूँ उस पर यही है अभिलाषा

मेरी दोस्ती पर ईश्वर तेरी असीम कृपा रहे

हर दुख से पार ले जाऊँ उसे

और आशा की यह किरण सदा जगमगाती रहे   

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