"काश ! मैं एक नन्हीं गिलहरी होती" - कविता देवडा़

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काश ! मैं एक नन्हीं गिलहरी होती,
घूमती फिरती यहां - वहां ,
स्कूल ना मुझको जाना पड़ता ,
गृहकार्य ना मुझको करना पड़ता।
ना ही किसी की डांट सुननी पड़ती ,
ना ही सुबह जल्दी उठना पड़ता ।
काश ! मैं एक नन्हीं गिलहरी होती,
पेड़ों पर चढ़ती - उतरती फिरती यहां-वहां,
थकती ना मैं किताबों का बोझ उठाकर ,
ना मुझको दिन भर जूतों में रहना पड़ता।
दाना चुगती, फल खाती,
मैं खुली हवा में घूमती,
काश ! मैं एक नन्हीं गिलहरी होती।

कविता देवडा़
The Fabindia School 

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