स्नेह और गुणवत्ता: कृष्ण गोपाल


वर्तमान युग में गुणवत्ता का विशेष महत्व है क्योंकि हर व्यक्ति यह सोचता है कि गुणवत्ता युक्त वस्तुओं का सेवाओं का उपभोग किया जाए। स्वयं के लिए निश्चित रूप से गुणवत्ता युक्त वस्तुओं का चुनाव करेंगे। यहाँ एक कारण है जिससे गुणवत्ता युक्त वस्तुओं की माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसा किसी एक क्षेत्र विशेष में नहीं बल्कि हर क्षेत्र में देखी जा सकती है।

व्यक्ति गुणवत्ता युक्त वस्तुओं का उपभोग करने में संतुष्टि का एहसास करता है। ऐसी वस्तुओं और बनाने वाली कंपनियों के प्रति लोगों को विश्वास होता है। इन वस्तुओं को क्रय करने में आर्थिक क्षति अवश्य हो सकती है किंतु वस्तु गुणवत्ता युक्त होगी, यह बात संतुष्टि का एहसास कराती है।

इसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में भी गुणवत्ता युक्त शिक्षा का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। शिक्षा के मायने बदलते जा रहे हैं। प्रयास किया जा रहा है कि शिक्षा प्राप्त कर लेने के पश्चात बेरोजगारी की समस्या पैदा ना हो।  हमारी शिक्षा प्रणाली में ऐसी व्यवस्था हो जिससे कि बालक अपने रूचि के क्षेत्र में जाए और अपना सृजनात्मक कौशल प्रकट करें। उसका मार्गदर्शन करने वाले भी ऐसे ही उत्कृष्ट हो जो उसकी रुचि को रोजगार में बदलने में सहायक हो।

हर बच्चे को सीखने के पर्याप्त अवसर मिले। किसी भी तरह का भेदभाव न करते हुए हर बच्चे को समान अवसर दिए जाए। सभी बालकों के स्तर समान नहीं होते हैं इसलिए अलग-अलग युक्तियों का इस्तेमाल करते हुए अध्यापन करवाया जाना चाहिए। कोई भी बालक पिछड़ न जाये इसका विशेष ख्याल रखा जाए। ऐसे अवसर भी प्रदान किए जाएँ जिसमें बच्चे स्वयं करके सीखने का प्रयास करें। बच्चों को अपनी अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता है तथा वे भावनात्मक रूप से स्वयं को सुरक्षित महसूस करें। इन सभी से बच्चों को सीखने के लिए एक साफ सुथरा माहौल मिलेगा जो बहुत आवश्यक है।

जहाँ स्नेह मिलता है, वहाँ बालक का मन रम जाता है। स्नेह प्रकट करने वालों के प्रति विश्वसनीय भावना जागृत हो जाती है। स्नेह पूर्ण वातावरण में बालक प्रसन्नता पूर्वक सीखने का प्रयास करता है। बालक के लिए स्नेह प्रकट करना एक औषधि की तरह है। सामान्य तौर पर ऐसा हर किसी के साथ हो सकता है-जहाँ प्रेम या स्नेह मिले वहाँ वातावरण खुशनुमा हो जाता है, ऐसे माहौल में सीखने की प्रक्रिया विशेष बलवती हो जाती है। अतः यह जरूरी हो जाता है कि शिक्षक अपने छात्रों से स्नेह युक्त व्यवहार करें।

स्नेह और गुणवत्ता दोनों मूल्य जहाँ मिल जाते हैं वहाँ निश्चित रूप से सीखने की प्रक्रिया और वातावरण दोनों ही अनुकूल हो जाते हैं। यदि वास्तविकता में देखा जाए तो उपर्युक्त दोनों मूल्य एक शिक्षक में होने परम आवश्यक है।  जिन शिक्षकों के पास यह दोनों मूल्य मिल जाते हैं वह बालकों के कोमल मन पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाने में कामयाब होते हैं। अतः अपने कार्य में गुणवत्ता लाकर तथा बच्चों को स्नेह देकर अध्यापन के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान प्राप्त किया जा सकता है।
Krishan Gopal
The Fabindia School, Bali 

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