हमारी हिंदी: कृष्ण गोपाल

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !

संविधान सभा में निर्णय लिया गया कि संघ की राजभाषा हिंदी होगी और लिपि देवनागरी, प्रयोग में आने वाले अंको का रूप अंतरराष्ट्रीय होगा। गांधीजी के अनुसार हिंदी जनमानस की भाषा है। हिंदी में कई भाषाओं का समावेश है, कई बोलियों का समावेश है। और यही वजह है कि हिंदी भाषा में पूरे देश की संस्कृति की झलक दिखाई देती है।

संस्कृत से तो हिंदी का जुड़ाव विशेष है। हिंदी को कई कवियों और लेखकों ने संजोया है। भारतेंदुजी ने इसके खड़ी बोली के रूप का प्रचार किया तो जयशंकर प्रसाद ने कामायनी से परिचय करवाया। हरिऔंध जी ने प्रियप्रवास, दिनकर जी ने रश्मिरथी, बच्चनजी ने निशा निमंत्रण तो मैथिलीशरण जी ने साकेत जैसी रचनाओं से हिंदी विशिष्ठता प्रतिपादित की। वैसे तो ये सूचि बहुत छोटी है, ऐसा कह सकते है, ये तो एक झाँकी है। अपार साहित्य सृजन हो चुका है और होता जा रहा है। इन रचनाकारों ने हिंदी को समृद्ध किया। 

तुलसी का रामचरितमानस हमें अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत करता है। पिता के साथ, माता के साथ, भाई के साथ, मित्र के साथ यहाँ तक कि शत्रु के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए यह राम के चरित्र से ज्ञात हो जाता है। विनम्रता, सहयोग, आत्मविश्वास, साहस, संकल्प, क्षमा और भी कई जीवन मूल्यों का परिचय करवाया गया है।

यदि हम बात करें कबीरदास जी की तो उन्होंने सर्वधर्म समभाव की रूपरेखा समाज को दी। उनके अनुसार व्यक्ति की पहचान उसके कर्म से होती है, ऊँचे कुल से नहीं। जो व्यक्ति विनम्र होता है सही अर्थों में वही ज्ञानी होता है। ईश्वर एक है और आडम्बर से प्राप्त नहीं होंगे, इसके लिए सत्कर्म कीजिए। इस प्रकार कई महान विभूतियों ने समाज का मार्गदर्शन किया, जीवन का उद्देश्य सबके समक्ष रखा। भगवद्गीता में भी कर्म करने की बात कही, यदि कर्म निष्ठा पूर्वक किया जाएगा तो परिणाम भी अनुकूल ही होगा, इसलिए फल की चिंता न करने की बात कही गई।

उपर्युक्त तथ्य केवल उदाहरणार्थ लिखे गए है, ऐसे साहित्यों की कतई कमी नहीं हैं जो हमें जीवन का पाठ पढ़ाए। आधुनिकता की दौड़ में हम कहीं यह न भूल जाएँ कि हमारा अपना साहित्य, संस्कृति और भाषा कितनी प्रगाढ़ है। सीखना सब चाहिए पर अपना भूल जाएँ यह तो उचित नहीं। विदेशी भाषाओं के प्रयोग पर गर्वान्वित महसूस न करें। गर्व अपनी चीजों का होना चाहिए। धोती-कुरता पहनने वाले को कमतर समझ लिया जाता है जो उचित नहीं है। पढ़ा-लिखा ज्ञानी होना केवल विदेशी पौशाक से ही प्रदर्शित होता है क्या ?

गर्व से हिंदी बोलिए, यह हमारी भाषा है, हमारी भाषा में हमारी संस्कृति है, हमारी पहचान है। अपनी पहचान और संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए हिंदी का सम्मान कीजिए, प्रयोग कीजिए।
Krishan Gopal
The Fabindia School

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