विनम्रता और सराहना: उर्मिला राठौड़


विनम्रता का अर्थ है झुकाव। वह चाहे बल का हो या बुद्धि का। दोनों ही अत्यंत आवश्यक गुण है। झुकाव आपके कमज़ोर नहीं बनाती बल्कि और दुगुना ऊपर उठाने के लिए प्रेरणास्पद होती है। विनम्रता बाहुबल और बुद्धिबल का वह आंतरिक गुण है, जिसमें व्यक्ति की सर्वत्र प्रशंसा होती है। विनम्रता सकारात्मकता फैलाती है।

विनम्रता हृदय को कोमल, स्वच्छ, ईमानदार और विशाल बनाती हैइससे सहजता का गुण ता है, जिससे अनेक मित्र बनते है और उनके साथ एक निर्मल संबंध बनता है। किसी के द्वारा की गई मदद और अच्छे कार्य के लिए धन्यवाद देना, अपनी गलती स्वीकार करना और उसके लिए माफ़ी मांग लेना भी एक व्यवहार है, जो रिश्तों को बनाए रखता है

वृक्ष की वहीं डाल झुकती है जो मीठे, स्वादिष्ट और जीवन दायक फलों से लदी होती है, वैसे ही वहीं मनुष्य झुकता है, जो गुणों से युक्त हो, वे गुण चाहे ईमानदारी, साहस, दयालुता, आदर आदि हो सकते है। ये भी मनुष्य के फल है- कर्मों के फल। ये उक्ति हम सुनते आए कि "जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा।" अतएव जो व्यक्ति जितना विनम्र होगा, उसको सभी सम्मान देंगे।

विनम्रता के लिए समर्पण से परिपूर्ण आस्था ज़रूरी है। सिर्फ़ दिखावे के लिए नम्र होना उचित नहीं है। यह भावना अहंकार को जन्म देती है और अहंकार व्यक्ति के मन मस्तिष्क के सोचने विचारने की शक्ति ख़त्म करती है। यह हमें दूसरों की आलोचना का पात्र बनाती हैहम जब किसी की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते है तो उनमें नई प्रेरणा प्रस्फुटित होती है, किसी के मुँह पर की गई उनके गुणों की सराहना उन्हें कामयाब बनाती हैप्रशंसा मित्रता को बढ़ाती है। व्यक्ति के अंदर निहित दुर्गुणों को समाप्त करती है

एक अबोध बालक कभी भी चतुराई को नहीं समझ पाता है, न दिखावे को। उसके द्वारा किया गया हर कर्म निश्छल और शुद्ध होता है। वैसे ही व्यक्ति को हमेशा नम्र बनने के लिए शुद्ध विचार रखने चाहिए न कि कोई बदले की भावना। अगर हम बालकों को बार- बार उनकी कमियों के बारे में डाँट फटकार देते रहे तो उनके में मस्तिष्क में ऐसा ही व्यवहार होने लगता है । किसी भी गलती को हम दंड या आलोचना से नहीं दबा सकते । अगर ऐसा किया भी जाए तो यह बाद में अवसर मिलने पर भयंकर परिणाम दे सकती है। अतः अगर उनकी कोई गलती भी हो जाए तो उन्हें एकांत में आत्मीयता और सद्भावना से समझाना चाहिए। इसलिए सुधारात्मक, आलोचनात्मक चर्चा भी नपे तुले शब्दों में और मधुर वाणी में करनी चाहिए। उस वक़्त उन्हें उनकी आत्मशक्ति की पहचान कराना और सही दिशा की ओर ले जाना भी अत्यंत ही सावधानीपूर्वक करना चाहिए। धरती पर ऐसा व्यक्ति कोई नहीं है, जिसमें कोई अवगुण ना हो परन्तु गुणों को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। अतः उनके गुणों को सराहा जाए जिससे वो गुण-अवगुण के मध्य भेद जान सके

बच्चों को प्या, सम्मान एवं उचित देखभाल मिलनी चाहिए जिससे वो अच्छे नागरिक बन सके। जब भी हम किसी की सराहना करते है, वह उस व्यक्ति के लिए औषधि का कार्य करता है । एक छोटी सी प्रशंसा उन्हें सफलता की ओर प्रेरित और प्रोत्साहित करती है। हमें भी छात्रों को छोटी-छोटी मगर जान फूँकने वाली प्रशंसा के दो बोल बोलने चाहिए, उनकी पीथप-थपाकर उनका हौसला बढ़ाना चाहिए। समय पर कार्य करने पर, कक्षा में अनुशासन रखने पर, साथियों की मदद करने पर, उत्तर देने के प्रयासों पर, विद्यालय परिसर की देखभाल करने पर, सम्मान करने पर और छोटी- छोटी सफलताएँ अर्जित करने पर हमें उन्हें शाबाशी देनी चाहिए, जिससे उन्हें लगे कि उनका प्रत्येक कार्य नोटिस किया जाता हैइससे उनके सीखने की प्रवृत्ति बढ़ेगी और वो दुगुने उत्साह से कार्य करने की चेष्ठा करेंगे

देखा जाए तो विनम्रता ही सराहना है। सराहना के लिए किसी धन की तो आवश्यकता नहीं फिर क्यों हम कंजूस बने। समाज, परिवार और मित्रों में गुण देखें, उनके गुणों की प्रशंसा करे। गुणवानों को प्रोत्साहित करे।  यह हमारे स्वयं के लिए भी बेहतर होगा। विनम्र व्यक्ति को हर तरफ सराहा जाता है। दूसरों की खुले दिल से तारीफ करने वाला भी विनम्र होता है। वह चाहता है कि सभी प्रगति के पथ पर अग्रसर हो।
Urmila Rathore
The Fabindia School, Bali

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