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आशा और मित्रता: कृष्ण गोपाल


हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए, कठिन और सुखद दिन तो आते रहते हैं।  निराशा व्यक्ति को पतन की और ले जाती है जबकि आशा एक नई शक्ति का संचार करती है।  परोपकार करने से आशा बलवती होती है।  अपने सामर्थ्य के अनुसार सेवा कार्य अवश्य करें। 

आशा जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है।  प्रसन्नचित मन और सकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्ति को कभी बीमारियाँ नहीं घेरती। जीवन में लक्ष्य प्राप्ति करनी है तो आशावादी बने रहो, चाहे असफलता मिले किसी काम में, फिर भी आशा  दामन छोड़ो।  राष्ट्रकवि  मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में -

समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो।  

सच ही कहा गया है कि आशा अमर धन है।  व्यक्ति जब निराश हो जाता है तब कुछ भी करने की इच्छा नहीं रहती। यदि इसी प्रकार निठल्ला बैठ जाएगा तो प्रगति का चक्र ही रुक जाएगा।  निराशा का भाव मन में जगते  देर नहीं लगती।  ऐसे अवसर तो जैसे तैयार ही बैठे है।  जब कुछ करने की चाह हो और उसमें असफलता मिले तो निराश हो सकते है।  उचित सहयोग  मिले तो निराश हो सकते है।  अर्थात निराश होने के कई बहाने है।  

आशा का एक और रूप है- मित्रता।  मित्र होने पर आशा भी बलवती हो जाती है।  सच्चा मित्र व्याधि हर लेता है जबकि दुष्ट मित्र हमेशा कष्ट देता रहता है। मित्र से सहानुभूति रखें, आवश्यकतानुसार सहयोगी बनें, प्रसन्नचित, उदार और हितैषी बने।  हम सामाजिक प्राणी है अतः मित्रों की आवश्यकता रहती ही है।  मित्रों की संख्या में वृद्धि करें और प्रसन्न रहें। 

मित्र ऐसे हो जो हर कठिनाई में मदद करे, परन्तु केवल अपेक्षा ही रखें।  मित्रता का सठीक नियम है, देना।  पहले देने की मंशा रखें, मिलना तो स्वतः ही होता रहेगा।  यदि लेने की चाह में मित्र का हाथ थामा है, तो यह नियम के विरुद्ध है। सच्चा मित्र संकट में साथ नहीं छोड़ता ये बात आप पर भी लागु होगी।  अपने मित्र का साथ हर परिस्थिति में निभाइए, फिर मित्रता का आनंद लीजिए। 
Krishan Gopal
The Fabindia School, Bali

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