विचारशीलता और समझ: कृष्ण गोपाल


किसी भी बात को लेकर हमारे मन में विभिन्न प्रकार के विचार उमड़ते  है। सभी तरफ से उचित हो तभी हम उसे अमल में लाते हैं। यह तरीका ठीक भी है, ऐसा ही होना चाहिए। बचपन में बहुत सारी कहानियाँ पढ़ी थी जिसमें हर प्रकार से विचार करने के बाद ही आगे कदम रखने की प्रेरणा दी गई थी। ऐसा कहा भी जाता है कि -”बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए।”

माता-पिता बालक के लिए जो भी फैसले लेते हैं उन पर अच्छी तरह मनन या चिंतन करते हैं। हमारे किसी फैसले से बालक को कोई हानि न पहुँचे। एक शिक्षक भी अपनी अध्यापन विधियों में बार-बार परिवर्तन करता है इसके पीछे भी यही कारण होता है। मेरे किस प्रकार पढ़ाने पर बालक अच्छी प्रकार से समझ जाएगा, ऐसा विचार एक शिक्षक के मन में चलता रहता है।

घर परिवार या किसी भी स्थान पर कोई उत्सव आदि का आयोजन किया जा रहा हो तो हर प्रकार से विचार किया जाता है। छोटी सी भूल या छोटी सी कमी कहीं पूरे कार्यक्रम को बिगाड़ न दे। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि हर बात हर काम के लिए पहले से ही विचार कर लिया जाए। यहाँ विचार का तात्पर्य है हर प्रकार से सोच समझकर कार्य किया जाए साथ ही योजनाबद्ध तरीके से उसे आकार दिया जाए।

जितने बड़े स्तर का काम करते हैं उतने ही बड़े स्तर पर योजना बनाकर विचार किया जाना चाहिए। हम कभी नहीं चाहेंगे कि किसी प्रकार का कोई व्यवधान उपस्थित हो। बालक के भविष्य को लेकर भी अभिभावक चिंतनशील रहते हैं। बालक की रूचि और योग्यता के आधार पर ही विषय चयन करवाया जाना चाहिए। बालकों के पाठ्यक्रम भी बोर्ड द्वारा उनके स्तर के अनुरूप ही बनाया जाता है। इस पर भी संपूर्ण दृष्टि से विचार विमर्श किया जाता है।

एक प्रकार से हम कह सकते हैं कि यह एक समझ की बात है। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता जाता है उसकी समझ का स्तर भी बढ़ता जाता है। बालक अपना भला बुरा पहचान सके यह भी एक समझ ही है। हमें कहाँ कैसा व्यवहार करना चाहिए यह समझ ही है। हम दूसरों की भावनाओं को समझें और उनके अनुरूप चलें। जीवन में संकट और समस्याएँ आती रहती है किंतु इनका मुकाबला करना समझदारी है।

समझदारी और विचारशीलता दोनों  मूल्य आपस में जुड़े हुए हैं। कोई भी बालक या व्यक्ति इन दोनों मूल्यों का उपयोग करें कभी समस्याग्रस्त नहीं होंगे। सारा ज्ञान पुस्तकों में नहीं है, बहुत सी बातें हमें वातावरण से,दूसरों से सीखनी होती है। इनका सही दिशा में प्रयोग सफलता दिलवा सकता है। समझदारी और विचारशीलता के साथ आगे बढ़ें तो दुविधाओं से बचा जा सकता है।
Krishan Gopal
The Fabindia School, Bali

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