सावधानी और समझ: उषा पंवार


शिक्षक की हर कोशिश बच्चों को आगे बढ़ने में मदद करती है इसलिए उनको तात्कालिक परिणामों की परवाह किए बगैर पूरे मन से बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाने की प्रक्रिया जारी रखना चाहिए, कभी-कभी बच्चों में परिणाम आने में समय लगता है इसका अर्थ यह नहीं कि हमारी कोशिशों की कोई उपयोगिता नहीं है।

गुरू ही ब्रह्मा, गुरू ही विष्णु, गुरू ही शंकर” ऐसा इसलिए है क्योंकि एक गुरू ही अपने शिष्य को व्यवहारिक जीवन से रूबरू कराता है। एक शिक्षक और छात्र का रिश्ता उन रिश्तों में से एक होता है जिसे हम जिंदगी भर भूल नहीं सकते हैं। बचपन से बड़े होने तक शिक्षक हमें कई बातों का अनुभव कराते है। हमें जीवन में आगे बढ़ने और सफलता पाने का रास्ता भी दिखाते है।

शिक्षक को समाज की आधारशिला माना गया है। शिक्षक व शिक्षार्थियों को विनम्र होना चाहिए। विनम्रता फूल में महकने वाली सुगंध की तरह एक मानवीय गुण है, वह गुण यदि एक स्थान पर प्रकट होगा तो दूसरे स्थान पर भी ठीक उसी तरह प्रगट होगा। जिस छात्र में गुरु जनों के प्रति भावना होती हैं उसकी प्रतिभा अपने आप परिष्कृत होती रहती है और जल्दी से ज्ञानार्जन करता रहता है। गुरू के प्रति श्रद्धा रखने वाला छात्र शिक्षक की हर बात बड़े ध्यान से सुनता है और विश्वास पूर्वक ग्रहण करता है। वह अपना हितैषी समझ कर गुरू के दिए निर्देशों का आस्था पूर्वक पालन करता है जिससे उसमें चारित्रिक बल का विकास होता है। 

छात्रों को चार दिवारी कक्ष में पढ़ाने के साथ-साथ कभी-कभी बाहर पेड़ के नीचे खुली हवा में पढ़ाना चाहिए, पढ़ाने का अर्थ सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि बाहरी ज्ञान भी देना आवश्यक है। शिक्षकों को समझ होनी चाहिए कि प्रत्येक विद्यार्थी की सोचने समझने की शक्ति अलग-अलग होती है और जरूरी नहीं कि हमारा समझाया गया सबको समझ आए। अलग-अलग विधि से उदाहरण देकर समझाना चाहिए। पढ़ाने के लिए उपकरण हो क्योंकि छात्र सुनने से ज्यादा देखकर वे समझ सकते हैं।
Usha Panwar
The Fabindia School, Bali

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