मझधार में ज़िन्दगी (जीवन धारा)

(मानव जीवन की कई अवस्थाएँ होती है, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था | वैसे तो बाल्यावस्था, किशोरावस्था और युवावस्था में जीवन सम्बन्धी धारणाये बिलकुल निराली होती है, यह अवस्था अल्हड़पन में ही गुजर जाता है, किन्तु प्रौढ़ावस्था तक पहुँचते-पहुँचते मानव यह सोचने लगता की उसने अपने जीवन में क्या पाया और क्या खोया| यह कविता जीवन दर्शन पर आधारित है |)

न जाने कब, किस करवट, किस और चल रही ज़िन्दगी |
स्वप्न पूरी करने, किस और मुड  चली  ज़िन्दगी |
अधूरे ख्वाब पूरी करने की, प्रयास में मुड़ चली ज़िन्दगी |
धैर्य, हौसला, उत्साह, हिम्मत को सजोने लगी ज़िन्दगी |
                                       
कितनी रातें, कितने दिन प्रयास में बीती ज़िन्दगी |
कुछ सफ़लता,  कुछ आशा, कुछ उम्मीद में कट रही ज़िन्दगी |
यही सोचते-सोचते न जाने कब, मझधार में आ फँसी ज़िन्दगी |
समय के तेज़ प्रवाह में किस ओर बह चली ज़िन्दगी |
नाव में सवार पथिक की तरह है यह ज़िन्दगी |
मझधार में बवण्डर और तूफानों से जूझ रही ज़िन्दगी |
भँवर में और तेज़, आँधी, तूफ़ान, बवण्डरों से लड़ रही ज़िन्दगी |
नाव में बैठे पथिक की तरह शंकातुर ज़िन्दगी.. . |
दिन के उजाले में भी  धूल, धूसड़, अँधियारे सी ज़िन्दगी |
अब,  ज़िन्दगी और मौत के ख़ौफ़ से बे ख़ौफ़ ज़िन्दगी |
अब, परिणाम की परवाह से, बेफिक्र ज़िन्दगी…. |
सिर्फ़ ज़िन्दगी या हो मौत, आलिंगन को बेताब ज़िन्दगी |
धर्मेन्द्र पोद्दार 
                                                                                               भाषा विभाग प्रमुख, सेक्रेड हार्ट स्कूल, सिलीगुड़ी

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