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ख़ुशी और सहनशीलता: प्रलय नाग

अच्छा जीवन जीने के लिए खुश होना बेहद जरूरी है।  छात्रों और शिक्षकों के लिए इसका विशेष महत्व हो जाता है।  सीखना-सिखाना तभी संभव है जब वातावरण खुशियों भरा हो। हालाँकि ख़ुशी की परिभाषा भी अपने-अपने तरीके से बदल जाती है। अलग-अलग लोगों के पास खुशी के अलग-अलग विचार हैं।  

कुछ लोग मानते हैं कि यह पैसों में पाया जा सकता है, कुछ लोग प्यार में होते हैं तो ख़ुशी का अनुभव महसूस करते हैं और कुछ को ख़ुशी और संतुष्टि तब महसूस होती है जब वे पेशेवर जीवन में अच्छा काम करते हैं। छात्रों के भी अपने विचार होते है, उनके अनुरूप काम हो रहा है तो उन्हें ख़ुशी अनुभव होती है। खुशी को अनुभव करने का एकमात्र तरीका है कि हम अपने आस-पास सभी के बारे में अच्छी सोचें।  

कई लोग खुशी को पैसे से जोड़ते हैं और कई लोग इसे रिश्तों से जोड़ते हैं।  वे यह नहीं समझते हैं कि जब तक वे खुद खुश नहीं रहेंगे तब तक वे अपने रिश्तों में भी खुश नहीं रहेंगे। लोग आजकल खुशी को धन और सामानों से जोड़ते है। लोग सोचते है कि उनके पास धन है तो वे खुश है इसलिए रिश्ते से ज्यादा ख़ुशी उन्हें धन में लगता है।  इसलिए आजकल लोगों में सहनशीलता कम है।  जो लोग सहनशील है उन्हें ख़ुशी के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता। उनके पास धन या सुख-सुविधा का सामान है या नहीं वे हर छोटे-छोटी चीजों में खुश रहते हैं। पहले लोग कम संसाधनों में भी संतुष्ट रहते थे। ये संतुष्टि सहनशीलता है। व्यक्ति क्रियाशील रहे परन्तु सहनशील भी रहे। कई बार किए गए कार्यों के परिणाम देर से आते है। ऐसे में व्यक्ति कर्म हीन हो जाता है। पुरुषार्थ करना महत्वपूर्ण है। अतः सहनशील बनकर खुशियाँ बटोरते हुए कर्तव्य परायण बनना परमावश्यक है। 
Pralay Nag
The Fabindia School, Bali

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