सादगी और विश्वास: कृष्ण गोपाल


संयम और सादगी के साथ जीना ही सही अर्थ में जीवन है। जो सादगी से जीवन-यापन करता है उसकी आवश्यकताएँ कम होगी। अभी ताजा उदाहरण ही लेते है- कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया थम गई।  उत्सव, समारोह, शादी आदि सब कुछ रुक गया।  मनुष्य अपनी जरुरी वस्तुओं को पाने के लिए परेशान हो गया।  ऐसे में वे मस्त थे जिनकी आवश्यकताएँ कम थी।  

सादगी से बहुत कुछ जुड़ा हुआ है। संयम से रहने पर प्रकृति से भी कम लेने का प्रयास रहेगा।  यदि प्रकृति का दोहन ठीक अनुपात में होगा तो संतुलन बिगड़ेगा नहीं।  असमय वर्षा, समय पर वर्षा होना, भीषण गर्मी ये सब हमारी ही तो देन है।  सादगीपूर्ण जीवन जो हमारे पूर्वजों ने जिया और स्वस्थ रहकर, दीर्घायु बने।  हमारे महापुरुषों ने सादगी से रहकर ऊँचे आदर्श स्थापित किए। 

साधारण व्यक्तित्व की एक और विशेषता है कि ऐसा व्यक्ति हर किसी का विश्वास जीत लेता है।  क्योंकि रहन-सहन में ही नहीं सादगी आंतरिक होनी चाहिए।  कही गई बात से मुकर  जाए, लेने का भाव काम रखें, परोपकार ही जीवन का परम उद्देश्य हो ऐसा व्यक्ति विश्वास-पात्र बन ही जाएगा। 

बालकों में ये मूल्य विकसित करने की आवश्यकता है। आज के इस प्रतियोगी युग में हर व्यक्ति, हर क्षेत्र में होड़ करने में जुटा है।  इस हेतु में उसने अपना जीवन खपा दिया।  बालक को विश्वास देना चाहिए, जिससे वह भी विश्वास करे। 

एक छोटी सी घटना, अधिक महत्वपूर्ण नहीं है पर गौर करें तो कुछ कम भी नहीं।  विद्यालय के वार्षिकोत्सव की तैयारियाँ चल रही थी।  मैं कुछ छात्र-छात्राओं को नाटक का अभ्यास करवा रहा था।  इसमें कुछ संवाद संस्कृत में करने का विचार किया।  कुछ छात्र घबरा गए, उनको संवाद दे दिए गए और कहा गया कल तक संवाद कंठस्थ हो जाने चाहिए।  मुख्य भूमिका वाले छात्र के संवाद कुछ अधिक थे।  वह मुकर गया- 'कल तक याद नहीं हो सकेंगे।'  मैंने जोर दिया कि होने चाहिए, हमारे पास समय कम हैं।  वह छात्र अनमना सा चला गया, उसके साथियों ने कहा, ये याद नहीं करेगा पर मुझे विश्वास था उस पर।  अगले दिन जब वह आया तो सारे संवाद उसे कंठस्थ थे।  

इसप्रकार का विश्वास हमें पैदा करना चाहिए। कुछ भी हो जाए कहे हुए शब्दों से कभी मुकरना नहीं चाहिए।  यदि कही गई बात पर अमल नहीं कर पाए हो तो भूल भी स्वीकार कर लेनी चाहिए। 
Krishan Gopal
The Fabindia School, Bali

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