भरोसा और सादगी: सुरेश सिंह नेगी


भरोसा एक मोतियों की माला की तरह होता है जिसमे धागा, मोतियों को एक सूत्र में बाँधे रखता है। यह काफी हद तक एक भावनात्मक क्रिया है, जिसे हम बाहरी रूप से नहीं दिखा सकते हैं।

बस, कुछ आन्तरिक शक्तियाँ ऐंसी भी हैं, जो हम सभी को एक साथ जोड़े रखती हैं। जिसे भरोसा के नाम से  जाता है। इसकी उपस्थिति लोगों को एक साथ रहने और काम करने, सुरक्षित महसूस करने और एक समूह से संबंधित होने की अनुमति देकर रिश्तों को मजबूत करती है। इसीलिए हमें अपने परिवार के सदस्यों, अपने मित्रों और अपने सहकर्मियों पर भरोसा करने की आवश्यकता है।

आमतौर पर कहा जाता है कि 'सादगी' एक गुण है, हम में से कई लोग यह भी मानते हैं, कि यह एक खूबसूरत चीज है। वास्तविक जीवन में सादगी का प्रतीक हमारा पहनावा, खान-पान और रहन- सहन के रूप में माना जाता है। लेकिन इस तरह की सादगी बाहरी है, इसके साथ-साथ आन्तरिक सादगी का भी हमारे जीवन में होना अति महत्वपूर्ण है।

इसके लिये हमें अपने भाषण और शिष्टाचार में सादगी का पालन करना चाहिए। हमें अपनी बात में मीठा और विनम्र होना चाहिए। हमें घमंड नहीं करना चाहिए, न ही दूसरों को धमकाने की कोशिश करनी चाहिए। हमें किसी भी परिस्थिति में अपना आपा नहीं खोना चाहिए। हमें अपने व्यवहार में ईमानदार और सीधा होना चाहिए।

जहाँ सादगी की बात की जाए तो एक छोटा बच्चा इसका सबसे अच्छा उदाहरण हो सकता है, क्योंकि जो सादगी एक बच्चे में होती है वह किसी में नहीं होती है। वहीं, दूसरी ओर एक बच्चे का अपनी माँ के प्रति जो भरोसा होता है वह भी अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता है। 
Suresh Singh Negi
The Fabindia School, Bali

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