साहस और धैर्य: सुरेश सिंह नेगी


डर, दर्द, खतरा, अनिश्चितता का सामना करने की क्षमता को साहस के नाम से जाना जाता है। क्रोध के आने पर एक कायर भी खुद को भूल जाता है और लड़ने लग जाता है। लेकिन क्रोध में वह जो काम करता है वह साहस नहीं होता है।

डर का न होना साहस नहीं है बल्कि डर पर विजय पाना साहस है बहादुर वह नहीं जो भयभीत नहीं होता है, बल्कि वह है जो इस भय को परास्त करता है।

इन्द्रियों को वश में रखना, भावनाओं पर काबू पाना धैर्य को परिभाषित करता है। इंसान को इंसान बनाए रखने में यह मुख्य भूमिका अदा करता है। विवेक, सहनशीलता, सद्विचार, संवेदनशीलता, अनुशासन, संतोष धैर्य के आधार स्तंभ हैं। धैर्य  सफलता की  पहली सीढ़ी हैं।

जहाँ एक ओर सच बोलने के लिए साहस की आवश्यकता होती है, वहीं दूसरी ओर सच सुनने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। अगर हौसला बुलंद हो तो दुनिया का कोई भी काम असंभव नहीं है । यह बात दशरथ मांझी ने बखूबी साबित करके दिखाया है। पर्वत पुरुष दशरथ मांझी ने छेनी हथौड़ी एवं मजबूत इरादे से पहाड़ का सीना चीर कर दिखाया है । 

दशरथ मांझी 18 वर्ष की उम्र से ही पहाड़ काटने में लग गए थे और लगातार 22 वर्षों तक पहाड़ को काटते रहे; उनके दृढ़ विश्वास एवं मजबूत इरादे के आगे पहाड़ भी हार गया और 22 वर्षों की मेहनत के फलस्वरूप 360 फुट लंबा 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता बना दिया । जिसके कारण उनकी गाँव गहलौर से शहर की दूरी 55 किलोमीटर से घटकर 15 किलोमीटर हो गई ।

इसी तरह से अखरोट का पेड़ लगाने के लिए साहस और धैर्य की आवश्यकता होती है, क्योंकि आमतौर पर अखरोट का पेड़ फल देने में कम से कम दस साल का लम्बा समय लगाता है। दोस्तों हमें इन उदाहरणों से यही सीख मिलती है कि इंसान के लिए कोई भी काम असंभव नहीं है । आप वह सब कुछ कर सकते हैं, जो आप सोच सकते हैं ।

इस के लिए बस शुरू कीजिए और उस काम को निरंतर करते रहिए सफलता एक दिन आपको जरूर मिलेगी
Suresh Singh Negi
The Fabindia School

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