ख़ुशी और सहनशीलता: आयशा टॉक


ख़ुशी एक ऐसी चीज है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। यह केवल किसी की मुस्कान की अभिव्यक्ति से महसूस किया जा सकता है। इसके अलावा ख़ुशी मन के भीतर से आती है और कोई भी आपकी ख़ुशी नहीं चुरा सकता है। 

सहनशीलता, हमारे जीवन का सबसे आवश्यक गुण है। यदि हमारे भीतर सहनशीलता होगी तो हम अपने भीतर के ईर्ष्या एवं दर्द से मुक्त रहेंगे। तब हमारी आत्मा में एक अजीब सी संतुष्टि रहेगी।

बचपन से ही बच्चों में सहनशीलता की आदत विकसित करनी चाहिए। उन्हें सिखाया जाना चाहिए कि किसी भी तरह की परेशानी में एकदम से घबराना नहीं चाहिए एवं धैर्यपूर्वक उसका समाधान निकालने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से सफलता जरूर मिलती है। 

 कक्षा में ख़ुशी का माहौल होना भी बहुत जरूरी होता है। इसके लिए अध्यापक विद्यार्थियों को पूरा समय पढ़ाई न करवाकर कभी - कभी पढ़ाई के दौरान थोड़ा - बहुत मनोरंजन भी करवा सकते है, जैसे कि -विद्यार्थियों को आगे आकर कहानी सुनाने का अवसर दिया जाए, कभी कुछ रचनात्मक कार्य करवाया जा सकता है। कभी किसी पाठ का विद्यार्थियों द्वारा समूह में चर्चा एवं अभिनय भी करवा सकते है। पढ़ाने के तरीके बदलने से भी कक्षा में ख़ुशी का माहौल बन सकता है। 

सहनशील एवं खुशमिज़ाज व्यक्ति को हर कोई पसंद करता है। एक अध्यापक में सहनशीलता होना अति - आवश्यक होता है। क्योंकि कक्षा में सभी विद्यार्थियों की समझने की क्षमता एक जैसी नहीं होती है। कुछ बहुत जल्दी समझ जाते हैं और कुछ विद्यार्थी बार - बार  पूछते हैं। ऐसी स्थिति में अध्यापक को सहिष्णु एवं खुशमिज़ाज  रहना  बहुत जरूरी हो जाता है। यदि अध्यापक उस वक़्त क्रोध करेगा, तो बच्चे डर के मारे कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाएँगे। इस कारण से ऐसे विद्यार्थी हमेशा पीछे ही रह जाते है। वे संकोची स्वभाव के हो जाते है। 
Ayasha Tak
The Fabindia School, Bali

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